Saturday, 8 October 2016

नारायण का समर्पण

आज के समय पर किसी को भी भागवत कथा में रूचि नहीं रही परंतु उस से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों को पढ़ने का समय अवश्य है।
क्या प्रभु ने कभी किस के समक्ष समर्पण किया है ?
इसका जवाब है हाँ.... 
प्रभु ने तीन दैत्यों अथवा राक्षसों के समक्ष समर्पण किया है 
१. वानर राज बाली 
जैसा की सभी को पता है की बाली के पास ऐसी शक्ति थी जिस से उस के समक्ष खड़े योद्धा की आधी शक्ति उस में आ जाती थी तब श्री राम ने उसे मारने के लिए छिप कर तीर चलाया था।इसके बाद श्री राम जब बाली के समक्ष आये तब बाली ने मारने का कारण पुछा तो रामजी ने छोटे भाई का राज्य हथियाने और उसकी पत्नी को अपनी कैद में रखने का कारण बताया। तब बाली ने पुछा की ये नियम किसने किसके लिए बनाये ?
रामजी ने कहा ये नियम महर्षि मनु ने मनुष्यो के लिए बनाये। 
तब बाली ने कहा प्रभु में तो वानर हूँ मुझपर ये नियम कैसे लग सकते है ?

2. राजा बलि 
जब प्रभु ने वामन अवतार लिया और बलि से ढाई पग भूमि मांगी तब बलि ने बड़ी विनम्रता से कहा की वामन थोड़ा ज्यादा मानगो तब वामन देव ने कहा,नहीं इतना ही देदो। बलि ने कहा नाप लो किसी भी दिशा में ढाई  पग भूमि। प्रभु ने तभी विराट रूप धारण किया और १ पग में धरती दूसरे में आकाश नाप दिया फिर पुछा आधा पग कहां पर रखु  ?
बलि ने कहा प्रभु जब मांगे थे तब तो नन्हे नन्हे पग थे जब नापने लगे तब पग विराट कर लिए ये कहाँ का न्याय है ?
इस पर प्रभु ने कहा की न्याय नहीं है इसी लिए आज से तुम्हे में पाताल लोक का राजा बनाता हु। 

3 . कालिया नाग 

श्री कृष्णा बचपन में यमुना के किनारे खेलते थे एक बार जब खेलते हुए गेंद यमुना के पानी में गिर गई तब सबने कहा की इस गेंद को कोई नहीं निकलेगा क्योके यमुना में कालिया नाग रहता है और उसके विष से सब मर जाते है तब श्री कृष्ण गेंद निकलने यमुना में उतरे और कालिया नाग के सामने गए तो कालिया नाग ने उनपर भी विष से आक्रमण किया तब श्री कृष्णा ने कालिया को बंधक बना कर उसका फन कुचलने के लिए जैसे ही पग आगे बढ़ाये तब कालिया नाग की पत्नी आई और उसने कृष्णा जी से रुकने का आग्रह किया। 
कृष्णा जी ने रुक कर कहा की ये सभी को अपने विष का शिकार बनाता है इस लिए इसका मर जाना ही उचित है। 
तब कालिया नाग बोला की प्रभु ये सृस्टि आपकी रचना है इसमें जिसके पास जो भी है वो आपकी इच्छा से है मेरे मुख में विष भी आप ही की देन है यदि ये गलत है तो आपको मेरे मुख में अमृत देना चाहिए था तब में सभी पर अमृत की वर्षा करता। 
ये सुनकर श्री कृष्णा रुक गए और कालीया नाग को जाने दिया। 



















Saturday, 1 October 2016

ताशकंद धोखा

भारत ने अपने युद्धो के इतिहास में तीन निर्णायक युद्ध लाडे आई जिनमे से २ पकिस्तान से और एक चीन से लड़ा है। भारत का १९६५ का निर्णायक युद्ध जो की पकिस्तान की सेना का मानसिक संतुलन खो जाने के कारन से हुआ था और वो कुछ पकिस्तान को दिए अमेरिकी युद्धक टेंको की वजह से भी हुए थे। अमेरिका ने पकिस्तान को गरीब देश समझते हुए और एशिया महाद्वीप पर अपना कब्ज़ा करने के लिए पकिस्तान को सहायता करने का मन बना लिया था और उसी कारन उसने पकिस्तान को अपने युद्धक टैंक जो की उस समय पर किसी भी थल युद्ध को जितने में सक्षम थे।
भारतीय सेना का मनोबल तोड़ने के लिए केवल इतना ही काफी था युद्ध में पेटेंट टैंक का प्रयोग किया जा रहा है लेकिन हर हर महादेव के ललकारे लगा कर वाहेगुरु के खालसो ने ऐसा प्रचंड तांडव मचाया की पाकिस्तानी सेना के पाँव उखड गए और उन्होंने पेटेंट टेंक को केवल एक छल समझा और वहां से भाग खड़े हुए। 
इस यद्ध का एक और पहलु ये है की जिस स्थान पर युद्ध किया जा रहा था वहां पर एक प्राचीन मंदिर है जिसे "तनोट माता" का मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर की विशेषता ये है की पकिस्तान ने यहाँ पर 3000 बम गिराए परंतु फट एक भी नहीं। इसे मात्र एक संयोग नहीं कहा कहा जा सकता। चमत्कार का अंत यही नहीं हुआ थार के उस रण छेत्र में जो घर मंदिर छेत्र में थे उन्हें भी कोई ज्यादा क्षति नहीं पहुची उसके बाद पकिस्तान के जिन सैनको ने सीमा पर पर भारत भूमि पर कदम रखा और माता के मंदिर की तरफ बढे वो सभी अंधे हो गए ऐसी किवदंती है। 
इस युद्ध में भारत में पकिस्तान के 90 टैंक उसकी जगह पर खड़े खड़े ही ध्वस्त कर दिए और 200 से अधिक सैनिको को युद्ध भूमि में मार गिराया। आज भी वो सभी पाकिस्तानी या यें कहे की अमेरिकी टैंक भारत की छावनियों में रखे हुए है और अमेरिका को भारतीय वीरता की गाथा सुना रहे है। 
ऐसा ही कुछ अवाक्ष विमानों के साथ हुआ था और अमेरिका को मुह की खानी पड़ी थी। 
युद्ध हथियारों से नहीं होसलो से जीते जाते है ये भारतीय सेना से दुनिया को दिखा दिया है। 
इसके बाद हुआ ताशकंद  समझौता जिसमे की पकिस्तान ने रूस की सहायता से भारतीय प्रधानमंत्री श्री लाल बहाद्दुर शास्त्री जी को ताशकंद में ही मरवा दिया। 
इसके बाद जब उनके शव को भारत लाया गया ता बिना किसी चिकित्सक जाँच के उनकी अन्तयेष्टि कर दी गई। 
क्या यह जानना उचित नहीं था की जो कारन रूस ने दिया है क्या वो सही है या उसमे कुछ खोट है ?
शास्त्री जी की पत्नी के अनुसार उनके शव का रंग नीला पड़ चूका था जो की जहर देने का मुख्य लक्षण है और यदि चिकित्सक जांच की गई होती तो उनके शव का रंग शायद और भी अधिक नीला पड़ सकता था। 
उनको हृदय घात समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद आया था जबकि ऐसा कोई करना नहीं था जिसकी वजह से उन्हें हृदय घाट हो सके न ही उन्हें कोई रोग था न ही उन्हें किसी भी प्रकार का मोटापा था और न ही उन्हें कोई परेशानी थी अगर वो ह्रदय से कमजोर होते तो युद्ध का नाम सुनते ही ह्रदय घात से पीड़ित हो जाते लेकिन कठिन परिस्तिथियो का सामना उन्होंने बचपन से किया था और गरीबी और भूख को उन्होंने पास से देखा था  स्वतंत्रता के लिए कई बार जेल भी गए थे और यातनाये भी भोगी  थी इसके बाद भी उन्हें हृदय घात नहीं हुआ।