भारत ने अपने युद्धो के इतिहास में तीन निर्णायक युद्ध लाडे आई जिनमे से २ पकिस्तान से और एक चीन से लड़ा है। भारत का १९६५ का निर्णायक युद्ध जो की पकिस्तान की सेना का मानसिक संतुलन खो जाने के कारन से हुआ था और वो कुछ पकिस्तान को दिए अमेरिकी युद्धक टेंको की वजह से भी हुए थे। अमेरिका ने पकिस्तान को गरीब देश समझते हुए और एशिया महाद्वीप पर अपना कब्ज़ा करने के लिए पकिस्तान को सहायता करने का मन बना लिया था और उसी कारन उसने पकिस्तान को अपने युद्धक टैंक जो की उस समय पर किसी भी थल युद्ध को जितने में सक्षम थे।
भारतीय सेना का मनोबल तोड़ने के लिए केवल इतना ही काफी था युद्ध में पेटेंट टैंक का प्रयोग किया जा रहा है लेकिन हर हर महादेव के ललकारे लगा कर वाहेगुरु के खालसो ने ऐसा प्रचंड तांडव मचाया की पाकिस्तानी सेना के पाँव उखड गए और उन्होंने पेटेंट टेंक को केवल एक छल समझा और वहां से भाग खड़े हुए।
इस यद्ध का एक और पहलु ये है की जिस स्थान पर युद्ध किया जा रहा था वहां पर एक प्राचीन मंदिर है जिसे "तनोट माता" का मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर की विशेषता ये है की पकिस्तान ने यहाँ पर 3000 बम गिराए परंतु फट एक भी नहीं। इसे मात्र एक संयोग नहीं कहा कहा जा सकता। चमत्कार का अंत यही नहीं हुआ थार के उस रण छेत्र में जो घर मंदिर छेत्र में थे उन्हें भी कोई ज्यादा क्षति नहीं पहुची उसके बाद पकिस्तान के जिन सैनको ने सीमा पर पर भारत भूमि पर कदम रखा और माता के मंदिर की तरफ बढे वो सभी अंधे हो गए ऐसी किवदंती है।
इस युद्ध में भारत में पकिस्तान के 90 टैंक उसकी जगह पर खड़े खड़े ही ध्वस्त कर दिए और 200 से अधिक सैनिको को युद्ध भूमि में मार गिराया। आज भी वो सभी पाकिस्तानी या यें कहे की अमेरिकी टैंक भारत की छावनियों में रखे हुए है और अमेरिका को भारतीय वीरता की गाथा सुना रहे है।
ऐसा ही कुछ अवाक्ष विमानों के साथ हुआ था और अमेरिका को मुह की खानी पड़ी थी।
युद्ध हथियारों से नहीं होसलो से जीते जाते है ये भारतीय सेना से दुनिया को दिखा दिया है।
इसके बाद हुआ ताशकंद समझौता जिसमे की पकिस्तान ने रूस की सहायता से भारतीय प्रधानमंत्री श्री लाल बहाद्दुर शास्त्री जी को ताशकंद में ही मरवा दिया।
इसके बाद जब उनके शव को भारत लाया गया ता बिना किसी चिकित्सक जाँच के उनकी अन्तयेष्टि कर दी गई।
क्या यह जानना उचित नहीं था की जो कारन रूस ने दिया है क्या वो सही है या उसमे कुछ खोट है ?
शास्त्री जी की पत्नी के अनुसार उनके शव का रंग नीला पड़ चूका था जो की जहर देने का मुख्य लक्षण है और यदि चिकित्सक जांच की गई होती तो उनके शव का रंग शायद और भी अधिक नीला पड़ सकता था।
उनको हृदय घात समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद आया था जबकि ऐसा कोई करना नहीं था जिसकी वजह से उन्हें हृदय घाट हो सके न ही उन्हें कोई रोग था न ही उन्हें किसी भी प्रकार का मोटापा था और न ही उन्हें कोई परेशानी थी अगर वो ह्रदय से कमजोर होते तो युद्ध का नाम सुनते ही ह्रदय घात से पीड़ित हो जाते लेकिन कठिन परिस्तिथियो का सामना उन्होंने बचपन से किया था और गरीबी और भूख को उन्होंने पास से देखा था स्वतंत्रता के लिए कई बार जेल भी गए थे और यातनाये भी भोगी थी इसके बाद भी उन्हें हृदय घात नहीं हुआ।
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