Saturday, 15 April 2017

अर्जुन महादेव युद्ध

पांडवो को १३ वर्ष का वनवास तथा १ वर्ष का अज्ञातवास हुआ इसके बाद भी मामा शकुनि ने अपनी योजना यह बनाई की अज्ञात वास में पांडवो को अपने गुप्तचर द्वारा ढूंढ कर दोबारा से वनवास भेजने का।
बारहवे वर्ष के अंत में श्री कृष्ण  पाडवो से गुप्त रूप से मिले और उन्हें आगे होने वाले युद्ध की सूचना दी। कृष्ण जानते थे की युद्ध होना निश्चित है और उसके लिए कृष्ण ने उन्हें अपनी योजना तैयार रखने की भी सलाह दी अपने सभी अस्त्रो को साधने की सलाह दी और अन्य अस्त्रो के संधान और प्रयोग को जानने की भी सलाह दी। 
इस पर अर्जुन ने पूछ की इन सभी अस्त्रो को कैसे प्राप्त किया जायेगा ?
श्री कृष्ण ने बताया की सभी अस्त्रो के संरक्षक देवराज इंद्र है तुम उन्ही के पास जाओ वही तुम्हारी सहायता करेंगे। अर्जुन ने हिमालय की कंदराओ में जाकर देवराज इंद्र का आव्हान किया और उनसे सभी अस्त्रको की प्राप्ति की अंत में इंद्र ने कहा की "हे वीर धनुर्धर अर्जुन तुमने सभी अस्त्रको का ज्ञान प्राप्त कर लिया है परंतु जब तक तुम महादेव को प्रसन्न नहीं कर लोगे तब तक तुम इन अस्त्रो को भली भांति प्रयोग नहीं कर पाओगे केवल महादेव के आशीर्वाद से ही तुम इन अस्त्रो की अशी शक्ति को प्राप्त कर पाओगे "
अर्जुन ने देवराज से अनुमति लेकर वन में जाकर महादेव को प्रसन्न करने के लिए तप आरम्भ किया। तभी वह से निकल रहे एक राक्षस की दृस्टि अर्जुन पर पड़ी और अर्जुन को अपना सायंकाल का भोजन मान उस राक्षस ने एक जंगली सूअर का रूप धारणकर उस पर हमला करने के लिए दौड़ लगाई। अर्जुन अपने तप के कारण से अत्यधिक संवेदनशील हो चुके थे और और उन्होंने जंगली सूअर के आने की अनुभूति पहले ही हो गई और पास ही रखे अपने गांडीव धनुष को उठा कर उन्होंने एक ही बाण से उन्होंने सूअर का संहार कर दिया और उसकी स्थिति देखने को जब वो उठ कर उसके पास गए तो सूअर को देख कर आश्चर्य चकित हो गए। 
उन्होंने देखा की सूअर को 1 नहीं 2 बाण लगे है। ऐसा देखा ही था की तभी अर्जुन के कानो में ध्वनि सुनाई पड़ी की दूर हट जाओ यह मेरा शिकार है इसे मैंने मार है। 
ऐसा सुन अर्जुन मुस्कुराये और व्यक्ति की तरफ देख कर बोले  "हे भील राज आप होने बड़े धनुराधार परंतु में अर्जुन हूँ गुरु द्रोण का शिष्य तथा श्री कृष्ण का सखा मरे अन्यत्र कोई और धनुर्धर इस पृथ्वी पर मुझसे तेज बाण नहीं चला सकता आपसे देखने में कोई गलती हुई है कृपया आप इस शिकार को अपना न कहें " 
इसपर भील ने कहा की आप कोण अर्जुन है मैंने तो कभी किसी अर्जुन या द्रोण का नाम नहीं सुना कैसे धनुर्धर है आप जिसे कोई नहीं जनता। और यदि आप इस बात पर घमंड करते हो की आप सबसे बड़े दनुर्धर हो तो में इस बात को चुनोति देता हूँ। 
इसपर अर्जुन ने कहा की आप या तो शिकार को अपना न कहे या फिर मेरे गांडीव धनुष से युद्ध कर निर्णय कर लें। 
इसपर भी भील ने कहा की आप कैसे तपस्वी है जो शस्त्रो को समीप रख कर तप कर रहे है ?
अर्जुन ने इसका बड़ा मनमोहक उत्तर दिया और कहा की "जब मेरे अराध्य श्री महादेव त्रिशूल साथ में रख कर तपस्या   कर सकते है तो में क्यों नहीं " और इतना बोल कर अर्जुन ने अपना धनुष जैसे ही उतने की चेस्टा की भील ने उन्हें सावधान होकर वार से बचने की चेतावनी दी। 
अर्जुन ने  जैसे ही एक पग धनुष की ओर बढ़ाया तब तक एक ही क्षण में 16 बाणों ने उनका रास्ता रोक दिया। 
ऐसा देख अर्जुन ठिठक गए और सोचने लगे की कोन  इतना महान धनुर्धर है जिसने मेरे पलटने से पहले ही बाणों की वर्षा से मेरा रास्ता रोक दिया अर्जुन एक ऐसा योद्धा जिसके पास गांडीव धनुष है जिसकी प्रत्यंचा ही 108 बाणों से आरम्भ होती है और जो एक ही पल में लाखो बाणों का अनुसन्धान कर बाणों की वर्षा कर सकता है उसे एक भील ने धनुष उठाने तक भी नहीं दिया " 
ऐसा सोच कर अर्जुन ने हाथ जोड़ कर कहा की हे भीलराज मेरी ऐसा स्थिति तो केवल गुरु द्रोण, पितामह भीष्म देवराज इंद्र और महादेव के अन्यत्र कोई नहीं कर सकता। गुरु द्रोण तथा पितामह भीष्म आप है नहीं उन्हें में भली भाती जनता हूँ। आप देवराज इंद्र भी नहीं आप केवल महादेव है। 
ऐसा सुन भील ने कहा की में इंद्र क्यों नहीं हो सकता ?
तो अर्जुन ने कहा की भगवान् में उपासना तो आपकी कर रहा था तो इंद्र कैसे आ सकते है। 
ऐसा सुन महादेव अपने असली रूप में आये और घमंड न करने की आज्ञा देकर तथा दिव्या अस्त्रो का आशीर्वाद देकर वापस अंतर्धयान हो गए। 

Saturday, 1 April 2017

रावण की कैद

सभी सनातनियो को इस विषय में ज्ञात है की रावण एक महान योद्धा था जो बाली के अन्यत्र किसी से भी पराजित नहीं हुआ। परंतु ऐसा नहीं है रावण बाली के अन्यत्र भी एक प्रतापी राजा का कैदी रह चुका है।
हैहय वंश में उत्पन्न महाराज कार्तवीर्य अर्जुन बड़े ही शूरवीर तथा प्रतापी राजा थे वे अत्यंत ही साधक भी थे उन्होंने अपनी साधन के बल पर ही अपने गुरु दत्तोत्रय को प्रसन्न कर एक हजार भुजाओ का वरदान प्राप्त किया था जिसके कारन उनका नाम सहस्त्रबाहु अर्जुन भी था।
एक समय जब सहस्त्रबाहु अपने रानियों के साथ जल में क्रीड़ा कर रहा था तब कौतुक में उसने अपनी भुजाओ को फैला कर नदी का जल रोक लिया। 
उस समय रावण भगवान् भोलेनाथ की उपासना कर रहा था और जल का एका-एक समाप्त हो जाना उनके लिये आश्चर्य का कारन बन उठा तथा क्रोध का भी कारन बना। 
भगवान् को प्रसन्न करने के जलभिषेक के लिए रावण को जल की अत्यंत आवश्यकता थी तब जल का अनुपलब्ध होना क्रोध का कारण था। 
इस विषय का संज्ञान लेने जब रावण नदी में उतरा वे आगे की और बढ़ तो देखा की सहस्त्रबाहु अपनी रानियों के साथ जल क्रीड़ा कर रहा है और जल को रोक कर अपने बल का प्रदर्शन कर रहा है। यह सब देख रावण आग बबुला हो उठा और सीधे युद्ध करने लगा। 
परंतु सहत्रबाहु के आगे वह  टिक न सका और कुछ ही देर में सहस्त्रबाहु ने रावण को बंदी बना बेड़ियो के जकड कर कारागार  में डलवा दिया।
परंतु कुछ ही समय बाद पुलत्स्य मुनि ने अज्ञानी साधक समझ कर रावण को कारागार से मुक्त करा दिया और रावण फिर से साधना में बैठ कर अपनी शक्तियों को बढ़ने लगा।