Saturday, 1 April 2017

रावण की कैद

सभी सनातनियो को इस विषय में ज्ञात है की रावण एक महान योद्धा था जो बाली के अन्यत्र किसी से भी पराजित नहीं हुआ। परंतु ऐसा नहीं है रावण बाली के अन्यत्र भी एक प्रतापी राजा का कैदी रह चुका है।
हैहय वंश में उत्पन्न महाराज कार्तवीर्य अर्जुन बड़े ही शूरवीर तथा प्रतापी राजा थे वे अत्यंत ही साधक भी थे उन्होंने अपनी साधन के बल पर ही अपने गुरु दत्तोत्रय को प्रसन्न कर एक हजार भुजाओ का वरदान प्राप्त किया था जिसके कारन उनका नाम सहस्त्रबाहु अर्जुन भी था।
एक समय जब सहस्त्रबाहु अपने रानियों के साथ जल में क्रीड़ा कर रहा था तब कौतुक में उसने अपनी भुजाओ को फैला कर नदी का जल रोक लिया। 
उस समय रावण भगवान् भोलेनाथ की उपासना कर रहा था और जल का एका-एक समाप्त हो जाना उनके लिये आश्चर्य का कारन बन उठा तथा क्रोध का भी कारन बना। 
भगवान् को प्रसन्न करने के जलभिषेक के लिए रावण को जल की अत्यंत आवश्यकता थी तब जल का अनुपलब्ध होना क्रोध का कारण था। 
इस विषय का संज्ञान लेने जब रावण नदी में उतरा वे आगे की और बढ़ तो देखा की सहस्त्रबाहु अपनी रानियों के साथ जल क्रीड़ा कर रहा है और जल को रोक कर अपने बल का प्रदर्शन कर रहा है। यह सब देख रावण आग बबुला हो उठा और सीधे युद्ध करने लगा। 
परंतु सहत्रबाहु के आगे वह  टिक न सका और कुछ ही देर में सहस्त्रबाहु ने रावण को बंदी बना बेड़ियो के जकड कर कारागार  में डलवा दिया।
परंतु कुछ ही समय बाद पुलत्स्य मुनि ने अज्ञानी साधक समझ कर रावण को कारागार से मुक्त करा दिया और रावण फिर से साधना में बैठ कर अपनी शक्तियों को बढ़ने लगा। 

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