Tuesday, 7 February 2017

महारथी कर्ण : मृत्यु के कारण

महाभारत के महान योद्धाओ में से एक कर्ण थे जिनको परास्त करना किसी भी योद्धा के साहस की बात नहीं थी कर्ण  एक ऐसी महाथी थे जो पल भर में सैकड़ो सैनिको के प्राण हरण कर रहे थे लेकिन अंत में उनकी मृत्यु हुई जो की उनको शापो के कारण संभव हुई।
"सूर्यपुत्र महारथी कर्ण" को 3 शापो के कारण युद्ध में वीरगति प्राप्त हुई
  • पहला शाप गुरु परशुराम का था जो की उन्हें तब दिया गया था जब वो परशुरामजी से शिक्षा ले रहे थे। जब कर्ण परशुरामजी से शिक्षा लेने गए तब उन्हें ये ज्ञात हुआ की परशुरामजी क्षत्रियो को शिक्षा नहीं देते और कर्ण ने यह कह कर परशुरामजी से शिक्षा ग्रहण करनी आरम्भ कर दी की वो क्षत्रिय नहीं अपितु ब्राह्मण है। जब उनकी शिक्षा पूर्ण होने वाली थी तब एक इन गुरु परशुराम वन में आराम करने के लिए कर्ण की जंघा को अपने सिर के निचे लगा कर विश्राम करने लगे। इतने में इंद्र ने एक बिच्छू का रूप धरा और कर्ण की जांघ में आकर अपने दंश गड़ा दिए। इस से कर्ण लहूलुहान भी उसे और पीड़ा भी अत्यधिक हुई परंतु उन्होंने गुरु की नींद न खुले इस लिए सबकुछ सहन कर लिया जब गुरु की आँखे खुली और सारा दृश्य देखा तो उन्होंने कहा की इतनी पीड़ा सहन करना किसी ब्राह्मण के वश की बात नहीं है बताओ कोण हो तुम ?कर्ण ने सब बता दिया की वो क्षत्रिय कम के है इस बात से क्रोधित होकर परशुरामजी ने कर्ण को शाप दिया की जीवन में जब कभी भी उसे सिखाई हुई विद्याओ की सबसे अधिक आवश्यकता होगी तब वो शक्तिया वो भूल जायेगा। 
  • दूसरा शाप था गौ का शाप - परशुरामजी ने शाप के बाद गुरु भक्ति से प्रसन्न होकर यह वरदान भी दिया था की शब्द भेदी बाण उनसे अच्छा कोई नहीं चला पायेगा जब एक दन आखेट के लिए निकले कर्ण को वन में झाड़ियो में कुछ हलचल दिखाई दी तो उन्होंने कोई जंगली जीव समझ कर उसपर शब्द भेदी बाण का प्रयोग क्या जिस कारण झाड़ियो के पीछे घास चरति गौ की तदोपरांत ही मृत्यु हो गई। ऐसा देख गौ का स्वामी ब्राह्मण क्रोधित हो कर बोला की तेरी मृत्यु भी इसी प्रकार से होगी जब तू निहत्था होगा और अपने जीवन के लिए लड़ रहा होगा उस समय तुझपर भी कोई दया नहीं करेगा और मृत्यु तुझे अपने पास बुला लेगी। 
  • तीसरा शाप था पृथ्वी का शाप - एक समय अंगराज कर्ण अपने राज्य अंग में भ्रमण के लिए निकले तो राह में एक बालिका को रोते हुए देख अपने रथ को रोक लिया और बालिका से रोने का करण पूछा। बालिका ने कहा की उसका घृत का पात्र उसके हाथो से छूट कर गिर गया और टूट गया है यदि वह घर जाती है तो उसकी माता उसे दण्डित करेगी इस कारण वह रो रही है। यह सुन अंगराज ने कहा की में तुम्हे दूसरा घृत अपने राज्य से दिल दूंगा तुम रोना मत। बालिकां ने कहा की नहीं उसे यही घृत चाहिए और ऐसी हठ करने लगी तब कर्ण ने भूमि से मिटटी वाला घृत उठा कर अपने दोनों हाथो की हथेलियो के मध्य रख कर जो दबाया तो अंदर से किसी के कराहने की आवाज सुन कर कारण ने हाथ खोल लिए और माता भूमि को देख कर आश्चर्य से भर गए। भूमि ने कहा की तुमने मुझे अत्यंत पीड़ा पहुचाई है जब भी तुम अपने जीवन में निर्णायक युद्ध करोगे तब में तुम्हारे रथ के पहियो को निगल कर युद्ध के परिणाम को बदलूंगी।

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