Saturday, 18 February 2017

दानवीर कर्ण


कुंती के ज्येष्ठ पुत्र कर्ण ने यद्यपि अपना सम्पूर्ण जीवन ये लांछन झेलते हुए निभाया की वो सूत पुत्र है परंतु उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन को ये सुनते हुए भी व्यतीत किया की उनके जितना महान दानी भी कोई नहीं है।
इस श्रिस्टी में 2 ही राजाओ ने भगवान् को दान स्वरुप कुछ दिया है उनमे से एक थे राजा बलि और दूसरे थे अंगराज कर्ण।
कर्ण ने दान देना अपनी दिनचर्या बना लिया था वो प्रत्येक दिन सुबह उठते और नदी में स्नान  सूर्यदेव को अर्ध देकर जो भी उनके सम्मुख आता उसे मुह माँगा दान देते।
जब महाभारत का भीषण युद्ध चल रहा था उस समय पर भी कुछ ऐसा ही हुआ।
एक रात सूर्यदेव ने अंगराज को दर्शन दिए और बताया की वो ही उनके पिता है और उनका अंश है इसी कारन वो यह बताने आये थे की कल सुबह जब तुम दिनचर्या की तरह दान देने जाओगे तो देवराज इन्द्र ब्राह्मण का वेश धारण कर तुम्हरे सम्मुख आएंगे और तुमसे तुम्हारे कवच और कुंडल मांग लेंगे तुम पहले ही सचेत रहना और उन्हें ये मत देना।
तब कर्ण ने कहा की हे पितादेव मैंने अपने सारे जीवन में जिसने जो माँगा उसे वो दिया है और यदि कल में ऐसा करता हु तो मेरे द्वारा दिया गया सारा दान निष्फल हो जायेगा आने वाला समय मुझे काया की नजरो से देखेगा और कहेगा की ये वही सूर्यपुत्र कर्ण है जिसने अपनी मृत्यु के भय से दान नही किया।
ऐसा सुनकर सूर्यदेव कहने लगे पुत्र मेरा कार्य था तुम्हे छल से सचेत करना अब तुम्हारी इच्छा है आगे की सोचना।
अगली प्रातः दिनचर्या के अनुसार जब कर्ण कुंड से बहार आये तब इंद्र ब्राह्मण वेश में आकर दान की याचना करने लगे कर्ण ने पुछा की क्या चहिये ब्राह्मण तब उन्होंने कर्ण के कवच और कुंडल की माग की और कारण ने अपनी कटार से अपने शरीर को लहूलुहान कर उन्हें कवच और कुंडल दे दिए।
इस से प्रसन्न होकर इंद्रा ने अपना असली रूप दिखाया और कहा की तुमने ज्ञात होते हुए भी मुझे दान दिया इस कारण में तुमसे प्रसन्न हुआ हु तुम कोई वरदान मांगो।
कर्ण ने वरदान लेने से इनकार किया और कहा की दान के बदले में कुछ लेने से दान का अपमान होगा।
तब इंद्रा ने कहा की दान तुमने ब्राह्मण को दिया था वरदान तुम्हे इंद्र दे रहा है तो तुम वरदान स्वरुप कुछ मागो।
इसपर कर्ण ने उनसे शक्ति अस्त्र माँगा और इंद्र ने अस्त्र देते हुए कहा की इसका प्रयोग कम केवल 1 बार ही कर सकते हो उसके जवाब में कर्ण ने कहा की मुझे दूसरी बार इसकी आवश्यकता भी नहीं पड़ेगी। 

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