Wednesday, 24 August 2016

श्री कृष्णा -जन्म तथा मृत्यु

जैसा की सभी पौराणिक कथाओ के अनुसार कहा गया है की श्री कृष्णा का जन्म आज के दिन रात्रि १२ बजे हुआ था लेकिन सभी लोगो को ये नहीं पता पता है की श्री कृष्ण की मृत्यु का क्या कारन था ?
आज के इस पोस्ट में कुछ इसी प्रकार का वर्णन है कृपया कही कोई त्रुटि हो जाये तो क्षमा  करें।
बात श्री राम के समय  की है जब श्री रामजी वानर राज सुग्रीव के साथ मिलकर बाली को मारने जाते है उस समय पर सुग्रीव,श्री राम को बाली के पास होने वाली शक्तियों से भी परिचित करा देता है।
श्री राम को जब इस बात का पता चला की बाली के पास ऐसी शक्ति है जिस से उस से लड़ने वाले की आधी शक्ति बाली के अंदर आ जाती है तो श्री राम ने बाली को प्रत्यक्ष रूप की जगह परोक्ष रूप से मुक्ति प्रदान करना उचित समझा जिस समय बाली और सुग्रीव का युद्ध हो रहा था उस समय पर श्री राम ने एक पेड़ की ओट में छिपकर बाली पर तीर चलाया और बाली को मुक्ति के निकट पहुचाया     बाली ने प्रभु को देखते ही प्रणाम किया और कहा की प्रभु आप तो मर्यादा पुरुषोत्तम हो आपने इस प्रकार छिपकर मेरा वध क्यों किया ?
प्रभु ने जवाब दिया की जो व्यक्ति अपने छोटे भाई की पत्नी और राज्य का हनन करता है उसके लिए यही मर्यादा है।
तब सुग्रीव ने पूछा की प्रभु ये सभी नियम किसने बनाये है और किसके लिए बनाये है ?
श्री राम ने जवाब देते हुए कहा की  ये सभी नियम महर्षि मनु ने समस्त मानव जाती के लिए  बनाये हैं।
उस समय बाली ने कहा की प्रभु ये बात आपकी सत्य है परंतु ये नियम वानरों के लिए नहीं है और में मानव नहीं वानर हु।
तब रामजी ने कहा की ये सही है इसके लिए अगले जन्म में में पूर्ण रूप में होऊंगा और तुम मानव रूप में और उस समय तुम मेरी मृत्यु का कारन बनोगे। यथावत अगले जन्म में श्री कृष्णा की मृत्यु का कारण एक मानव बनता है जो की श्री कृष्णा के समक्ष कुछ नहीं था। 

Tuesday, 23 August 2016

निरंकार ओमकार

बंधुओ मैंने अपने पहले ब्लॉग में ॐ का  विवरण लिखन को कहा था।
आज में थोड़ा सा जो भी मुझे पता है  उसे लिखने का प्रयास करूँगा।
ॐ एक ऐसा शब्द है जो इस पृथ्वी पर पहली बार सुना गया जिस प्रकार रात के समय कोई भी ध्वनि न होने के कारन हम घडी के काटो की टिक टिक की ध्वनि भी बड़ी सरलता से सुन लेते है उसी प्रकार उस समय पर भी यही हुआ था एक ओमकार ही ऐसा शब्द था जो पृथ्वी के वातावरण में गूंज रहा था जिसके बाद से ही सब कुछ स्थापित हुआ है।
कुछ समय पहले कुछ वैज्ञानिको ने सूर्य पर होने वाली ध्वनि सुनी जो की ॐ के ही जैस अथवा ॐ ही थी शायद ये वही से हुआ हो पृथ्वी के उथल पुथल होने के बाद जब कोई व्यक्ति बचा हो जिसने ऐसा सुना हो या ग्रंथो के अनुसार ही कुछ हुआ हो जैस की लिखा है की धरती का उद्भव ओमकार ने किया है।
सभी हिदुओ ने  देवताओ के मंदिर देखे होंगे परंतु कभी ओमकार का मंदिर नहीं देखा जैसे की मुस्लिमो ने कभी अल्लाह को नहीं देखा बस नाम लिखा जा सकता है और एक चिन्ह ७८६ से प्रदर्शित किया जा सकता है वैसे ओमकार भी है।
सभी श्रुतियो के अनुसार मुस्लिम  धर्म का उद्धभव बाद में हुआ है तो शायद उन्होंने भी यही देखा हो और मूर्तिपूजा को आडम्बर मान कर उन्होंने निरंकार निर्गुण को अपना प्रभु स्वीकार किया हो।
जिस प्रकार से मुस्लिमो ने अपने अल्लाह को बताया है उसी प्रकार से हिन्दू जानो ने ओमकार का वर्णन किया है केवल एक प्रकाश जहा कुछ दिखाई नहीं देता केवल उजला उजला प्रकाश एक शांति का अनुभव जो कभी किसी ने नहीं किया। 

Sunday, 21 August 2016

रावण -एक महावीर योद्धा एक ब्राह्मण एक राक्षस

मित्रो रामायण के महानायक और खलनायक के विषय में तो सभी ने सुना होगा लेकिन इन खलनायको और नायको का यहाँ पर आना कैसे हुआ ये भी एक विषय है। बात उस समय की है जब प्रभु श्री हरी अपनी शैय्या पर विश्राम कर रहे थे और उनके द्वारपाल द्वारो पर पहरा दे रहे थे तभी बाल ऋषि वह पधारे और कहने लगे की प्रभु  से मिलना है और  मिलकर प्रभु से कुछ चर्चा करनी है।
इसपर द्वारपालों ने कहा की प्रभु के विश्राम का समय है अभी नहीं मिल सकते
बार बार आग्रह करने पर भी जब द्वारपाल नहीं मने तो दोनों को बाल ऋषियों ने शाप दिया की तुम सैकड़ो जन्मो तक पृथ्वी पर राक्षसों की तरह दुःख भोगोगे।
इनते में शोर सुनकर प्रभु बाहर आये और शाप वापस लेने की विनती करने लगे इसपर बाल ऋषियो ने कहा की हम वापस तो नहीं ले सकते लेकिन शाप कम कर सकते है तब  उन्होंने कहा की शाप में तुम दोनों को या तो 7 जन्म प्रभु की कठोर भक्ति करनी होगी या फिर ३ जनम प्रभु  से शत्रुता।
तब जय और विजय ने शत्रुता स्वीकारी और तीन जन्मो में रावण-कुम्भकरण,कंस-शिशुपाल और हिरण्यकश्यप-हिरण्यकश्यपु।
तीनो ही जन्मो ने  दोनों भाई एक से बढ़कर एक शक्तियाँ प्राप्त की और श्री हरी को मारने का प्रयास किया अपने शाप की मुक्ति के लिए और  शाप मुक्त किया।
रावण ने चारो वेदों का ज्ञान प्राप्त ब्रम्हा के बाद रावण ही ऐसा था जिसने ४ वेदों का ज्ञान प्राप्त किया था।
रावण ज्ञान का ऐसा सागर बन गया था की यदि वो अपने ज्ञान को सार्थक करता तो आज भारत वर्ष कही और होता परंतु जब ज्ञान और विज्ञानं अपनी अति की सिमा पर आ लगते है तो उनका विनाश हो जाता है।
जिस प्रकार से मोहन जोदड़ो सभयता हिडम्बा सभ्यता का विनाश अति विकसित होने के कारन से हुआ उसी प्रकार से बाकि सभी कालो में भी उनका विनाश हुआ है।
आज के ही इस युग में देखा जाये तो हम सभी अपनी मृत्यु का सामान एकत्रित कर रहे है।
नए नए आविष्कार आज तो लाभकारी है परंतु कुछ समय बाद इनके घातक प्रभावो का पता चलता है CNG का प्रयोग भी कुछ इसी प्रकार है।
आगे का विवरण अगले सप्ताह। 

Thursday, 18 August 2016

रक्षा सूत्र अथवा रक्षा बंधन

नमस्कार मित्रो
आज में प्राचीन समय में होने वाली कुछ घटनाओ के वर्णन से आपको कुछ बताना चाहूंगा
जैसा की सभी को पता है की आज रक्षा बंधन का त्यौहार है परंतु ये त्यौहार किस आधार पर था तथा कन  इसे मनाता था प्राचीन पद्धतिया क्या थी इसे मानाने की उनके विषय में भी जानना आवश्यक है।
तो कथा कुछ इस प्रकार है की जब माभरत का युद्ध चल रहा था उस समय पर कोरवो ने चक्रव्यूह की रचना की जिस से की वो एक पांडव को मार सकें पार्थ(अर्जुन) के अन्यत्र। योजना के अनुसार पार्थ को लड़ाई के लिए विराट नगर जाना पड़ा और चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए पार्थ के पुत्र  अभिमन्यु को जाना पड़ा।
अभिमन्यु महावीर योद्धा था परंतु उसे अंतिम द्वार तोडना नहीं आता था इस कारण अभिमन्यु और बाकि सभी महारथियों को अंतिम द्वार पर काफी समय तक युद्ध लड़ना पड़ा। युद्ध के समय जब अभिमन्यु किसी से मर नहीं रहा था तब गुरु द्रोण ने कहा की जब तक इसके हाथ से वो रक्षा सूत्र नहीं काट दिया जायेगा तब तक   इसका मरना असम्भव है। उस समय पर कर्ण ने अपनी विद्या से अभिमन्यु के हाथ में बांध रक्षा सूत्र काटा को उसे वीरगति तक पहुचाया।
अभिमन्यु को रक्षा सूत्र उसकी पत्नी ने बांध था और जब तक उसका सतीत्व भंग न हो अथवा उसे काटा न जाये तब तक महारथी को कोई नहीं मार सकता था ऐसा ब्रम्हा जी का वरदान था। ये प्रथा केवल युद्ध के पहले दिन ही की जाती थी ब्राह्मण पत्नी अथवा बहन को ही ऐसा करने का अधिकार था और ये रीती केवल क्षत्रियो में ही की  जाती थी उनके अन्यत्र ये किसी भी जाती में प्रचलित नहीं थी इसका कारण था किसी और वर्ण  का युद्ध में सम्मलित न होना।प्राचीन काल में  युद्ध करना क्षत्रियो का कर्म होता था ब्राह्मणों का कर्म शिक्षा देना था यदपि ब्राह्मण युद्ध कला में महारथी थी इसका उदाहरण श्री परशुरामजी से दिया जा सकता है परंतु ये उनका कर्म नहीं था।
आज के समय पर रक्षा सूत्र बांधना एक त्यौहार समझ लिया गया है परंतु ये केवल समय का बदलाव है और हमारे पूर्वजो का विदेशी आक्रान्ताओ के द्वारा जो सदमें हुआ है उसके कारन हम सबकुछ भूल चुके है आज के समय पर प्रत्येक व्यक्ति अपनी बहन पत्नी अथवा पुत्री के लिए क्षत्रिय है आज के इस भीषण कलयुग ने हम सभी को क्षत्रिय बनने पर विवश कर दिया है।
इस विवशता को देखकर अपनी बहनो/धर्म बहनो और पुत्रियों/धर्म पुत्रियों की रक्षा  के लिए भरण करो सत आज भी है परंतु उसे केवल पहचानने की आवश्यकता है। बिष्नु श्रेस्ठ जो भारतीय सेना में गोरखा थे सेवानिवृत्त होकर रेल से अपने घर जा रहे थे उसी रेल में ४० व्यक्तियों द्वारा के बालिका को बलात्कार की इच्छा से पकड़ने पर बिष्नु जी ने केवल अपनी एक खुखरी के उस बालिका की रक्षा कर अपना धर्म निभाया।
हम सभी को आवश्यकता है ऐसे भाई पिता बनने की।

Sunday, 14 August 2016

मत - विष्णु अथवा शैव




ૐ श्री गणेशाय नमः

वस्तुतः इस सृस्टि का निर्माण किसने किया है ये विज्ञान के द्वारा अभी तक किसी को भी नहीं पता चल पाया है।

परंतु हिन्दू शास्त्रो के अनुसार इस का उद्भव किस उद्देश्य से किया गया है इसका पूर्ण रूप से अनुमान लगा पाना अभी बाकि है।

हिन्दू जनो में साधारणतयः एक विषय को लेकर विरोधाभास है की "विष्णु" अथवा "शिव" दोनों ही देवो में किस देव को उच्च दर्ज दिया जाये ? उनकी इस परेशानी का हल कुछ इस प्रकार है की श्री हरी विष्णु के समक्ष जब भी भोले बाबा का गुणगान किया जाए तो हरी को अति प्रसन्नता होती है उदाहरण के लिए जब श्री राम का विवाह उत्सव था उस समय पर भोले के गुणगान किये गए थे जब रावण का उद्धार करने के लिए श्री हरी ने पुल का निर्माण आरम्भ किया था उस समय पर भोले की ही आराधन की गई थी श्री राम ने अपने पूरे जीवन में शिव के अन्यत्र किसी की देव की उपासना नहीं की थी परंतु इसका अर्थ ये नही की उन्होंने ऐसा कभी किया ही नहीं। श्री कृष्ण के जन्म के समय भी भोले साधु का वेश धारण कर उनसे मिलने के लिए आये थे और विष्णु पुराण में भी शिव महिमा का वर्णन है।

शिव पुराण में भी लिखा है की जो भी प्राणी विष्णु की उपासना करेगा वो मेरी ही उपासना के सामान होगी और जो विष्णु का अपमान करेगा वो मेरा अपमान होगा।

सभी मंत्रो में शिव ॐ का व्याख्यान है ॐ के अन्यत्र कोई ऐसा शब्द ही नहीं जिस से किसी मंत्र का उद्भव हो सके ऐसा क्यों है इसे समझने के लिए मेरे अगले लेख की प्रतीक्षा करें।