Thursday, 18 August 2016

रक्षा सूत्र अथवा रक्षा बंधन

नमस्कार मित्रो
आज में प्राचीन समय में होने वाली कुछ घटनाओ के वर्णन से आपको कुछ बताना चाहूंगा
जैसा की सभी को पता है की आज रक्षा बंधन का त्यौहार है परंतु ये त्यौहार किस आधार पर था तथा कन  इसे मनाता था प्राचीन पद्धतिया क्या थी इसे मानाने की उनके विषय में भी जानना आवश्यक है।
तो कथा कुछ इस प्रकार है की जब माभरत का युद्ध चल रहा था उस समय पर कोरवो ने चक्रव्यूह की रचना की जिस से की वो एक पांडव को मार सकें पार्थ(अर्जुन) के अन्यत्र। योजना के अनुसार पार्थ को लड़ाई के लिए विराट नगर जाना पड़ा और चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए पार्थ के पुत्र  अभिमन्यु को जाना पड़ा।
अभिमन्यु महावीर योद्धा था परंतु उसे अंतिम द्वार तोडना नहीं आता था इस कारण अभिमन्यु और बाकि सभी महारथियों को अंतिम द्वार पर काफी समय तक युद्ध लड़ना पड़ा। युद्ध के समय जब अभिमन्यु किसी से मर नहीं रहा था तब गुरु द्रोण ने कहा की जब तक इसके हाथ से वो रक्षा सूत्र नहीं काट दिया जायेगा तब तक   इसका मरना असम्भव है। उस समय पर कर्ण ने अपनी विद्या से अभिमन्यु के हाथ में बांध रक्षा सूत्र काटा को उसे वीरगति तक पहुचाया।
अभिमन्यु को रक्षा सूत्र उसकी पत्नी ने बांध था और जब तक उसका सतीत्व भंग न हो अथवा उसे काटा न जाये तब तक महारथी को कोई नहीं मार सकता था ऐसा ब्रम्हा जी का वरदान था। ये प्रथा केवल युद्ध के पहले दिन ही की जाती थी ब्राह्मण पत्नी अथवा बहन को ही ऐसा करने का अधिकार था और ये रीती केवल क्षत्रियो में ही की  जाती थी उनके अन्यत्र ये किसी भी जाती में प्रचलित नहीं थी इसका कारण था किसी और वर्ण  का युद्ध में सम्मलित न होना।प्राचीन काल में  युद्ध करना क्षत्रियो का कर्म होता था ब्राह्मणों का कर्म शिक्षा देना था यदपि ब्राह्मण युद्ध कला में महारथी थी इसका उदाहरण श्री परशुरामजी से दिया जा सकता है परंतु ये उनका कर्म नहीं था।
आज के समय पर रक्षा सूत्र बांधना एक त्यौहार समझ लिया गया है परंतु ये केवल समय का बदलाव है और हमारे पूर्वजो का विदेशी आक्रान्ताओ के द्वारा जो सदमें हुआ है उसके कारन हम सबकुछ भूल चुके है आज के समय पर प्रत्येक व्यक्ति अपनी बहन पत्नी अथवा पुत्री के लिए क्षत्रिय है आज के इस भीषण कलयुग ने हम सभी को क्षत्रिय बनने पर विवश कर दिया है।
इस विवशता को देखकर अपनी बहनो/धर्म बहनो और पुत्रियों/धर्म पुत्रियों की रक्षा  के लिए भरण करो सत आज भी है परंतु उसे केवल पहचानने की आवश्यकता है। बिष्नु श्रेस्ठ जो भारतीय सेना में गोरखा थे सेवानिवृत्त होकर रेल से अपने घर जा रहे थे उसी रेल में ४० व्यक्तियों द्वारा के बालिका को बलात्कार की इच्छा से पकड़ने पर बिष्नु जी ने केवल अपनी एक खुखरी के उस बालिका की रक्षा कर अपना धर्म निभाया।
हम सभी को आवश्यकता है ऐसे भाई पिता बनने की।

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