Saturday, 10 September 2016

पृथ्वी नाम के रहस्य

अधिकतर लोगों को ये नहीं पता की जिस जगह पर हम आहट हैं उसे पृथ्वी क्यों कहते है ?
किसने रखा इसका नाम पृथ्वी ?
क्या अर्थ है इस नाम का ?
ग्रंथो के अनुसार इस नाम का रहस्य कुछ इस प्रकार है
सृष्टि की रचना के समय भगवान विष्णु ने धरती को अनंत जल से निकालकर जल के ऊपर स्थित किया। लेकिन काफी समय तक धरती उबड़-खाबड़ रही। धरती पर रहने वाले लोग कंद मूल एवं फल खाकर भगवान के ध्यान में मग्न रहते थे। कृषि और उन्न उगाने का काम नहीं होता था। संगठित शासनतंत्र और समाज का निर्माण भी नहीं हुआ था। त्रेतायुग के आरंभ में पृथु का जन्म हुआ। इनके पिता का नाम वेन था।
वेन असंगठित शासन व्यवस्था का संचलन करता था। लेकिन इनकी व्यवस्था अच्छी नहीं थी। ऋषि मुनि इनके व्यवहार और अत्याचार से दुःखी हो गये और एक कुशा को अभिमंत्रित करके उससे वेन को मार डाला।वेन के मरण पश्चात हालात और भी दुर्भर हो गए अब प्रजा को कोई पालक न रहा प्रजा अस्थिर होने लगी पहले से भी ज्यादा लूटमार और  लगी तब ऋषियों ने वेन के मृत शरीर का मंथन किया इससे सबसे पहले एक काला व्यक्ति प्रकट हुआ जो केवट कहलाया। वर्तमान में इसे मछुआरा कहते हैं।

इसके बाद पुनः बाजूओं का मंथन करने पर पृथु उत्पन्न हुए। पृथु भगवान विष्णु के अंश से प्रकट हुए थे। वेन के अत्याचारपूर्ण व्यवहार के कारण पृथ्वी ने फल-फूल उत्पन्न करना बंद कर दिया था जिससे लोग व्याकुल हो रहे थे। पृथु ने धरती को अन्न तथा मनुष्य की उन्नति के लिए संसाधन प्रदान करने के लिए कहा। इस पर धरती ने कहा कि मनुष्य को कर्म करना होगा।

धरा को समतल करके खेती करनी होगी। परिश्रम पूर्वक धरती का दोहन करना होगा। जब मनुष्य ऐसा करने लगेगा तो मनुष्य खुशहाल हो जाएगा और उसे हर संसाधन प्रदान करूंगी। पृथु ने सबसे पहले भूमि को समतल करके खेती शुरू की और समाजिक व्यवस्था की आधारशीला रखी। लोगों ने कंदराओं को त्यागकर घर बनाकर रहना शुरू कर दिया।

जन समुदाय ने ऋषियों के साथ मिलकर पृथु को धरती का पहला राजा स्वीकार किया। पृथु ने धरती को अपनी पुत्री रूप में स्वीकार किया और इसका नाम पृथ्वी रखा। इस तरह संसार में कृषि एवं सामाजिक व्यवस्था की शुरूआत हुई। राज बनने के बाद पृथु ने धर्म पूर्वक, बिना किसी भेद-भाव के जनता की सेवा का वचन लिया। शतपथ ब्राह्मण नामक ग्रंथ में इस बात का उल्लेख किया गया है।
नोट : सभी युगों के अंत में उस युग की तकनीक विलुप्त हो जाती है इसका अर्थ ये है की त्रेता युग से पहले भी शासन व्यवस्था थी परंतु वो युग के अंत में नष्ट हो गई थी। 

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