Saturday, 4 March 2017

स्वयंभू की नगरी लंका

सभी श्रुतियो और लिपियों  के अनुसार देवादिदेव महादेव पर्वतो पर रहकर अपने जीवन को व्यतीत करते है और माता पार्वती वही पर उनकी सेवा कर अपने जीवन को सुखपूर्ण यापन करती हैं परंतु एक समय देवी लक्ष्मी जी ने देवी पार्वती को बैकुंठ स्थित अपने लोक के दर्शन के लिए बुलाया और वहाँ की छठा और आभा को देख देवी पार्वती मोहित हो गई।वापस आकार देवी पार्वती ने भगवान् भोलेनाथ से कहा की वो ऐसे जंगलो और पहाड़ो पर रहकर खुश नहीं है उन्हें भी एक नगरी चाहिए को बैकुंठ के सामान हो जहा पर सभी वस्तुएं स्वर्ण निर्मित हों और वो देवी लक्ष्मी को दिखा सकें।
ऐसा देख स्वयंभू ने कहा कि देवी यदि हमारे भाग्य में कोई नगरी होती तो हम ऐसे स्थान पर क्यों रहते? में एक योगी हूँ जो चिरकाल तक योग और तपस्या में अपना जीवन व्यतीत करता है उसे घर और विलासिता की क्या आवश्यकता ?
तुम मेरी बात मानो और ऐसे विचार त्याग दो ।परंतु देवी तो हठ कर के ही आई थी तो स्वयंभू ने कहा कि ठीक है यदि नहीं मानती हो तो अभी देवशिल्पी विश्वकर्मा को बुला कर मैं आपका आग्रह पूर्ण करता हूँ परंतु में अभी भी कह रहा हु कीकी हमारे भाग्य में विलासिता नहीं है।ऐसा कह कर देवशिल्पी को बुला कर भगवान् भोलेनाथ ने कहा कि महाराज ऐसे राज्य का निर्माण कीजिये जैसा कही ना ही और उसका स्थान अत्यन्त ही मनोहर और रमणीय हो उसमे नानां प्रकार के वृक्ष बगीचे ही ऐसी सड़को का निर्माण कीजिये जो कभी भी ख़राब ना हो महल का निर्माण अत्यन्त ही कुशल शिल्पियों द्वारा कराएं और किसी भी प्रकार की कोई त्रुटि ना हो महल का निर्माण केवल स्वर्ण से हो इसके अन्यत्र कोई भी धातु न प्रयोग की जाये सभी वस्तुएँ स्वर्ण की हो उसके अन्यत्र कोई धातु न हो।ऐसा आदेश प्राप्त कर विश्वकर्मा जी ने एक रात में स्वर्ण नगरी लंका का निर्माण किया और प्रभु को गृहप्रवेश के लिए हवन करने को कहकर आज्ञा लेकर चले गए।
हवन के लिए महादेव जी ने उस समय के प्रकांड ब्राह्मण श्री विश्रवा जी से आग्रह किया परंतु ऋषि ने अपना समय किसी और के यहाँ यज्ञ होने के कारण से अपने पुत्र रावण के आने का आश्वासन दिया।
भोलेनाथ ने भविष्य की होने वाली घटना को देख कर माता पार्वती को अपने पिता श्री के घर निमंत्रण देने भेज दिया और उनकी अनुपस्थिति में यज्ञ आरम्भ कराया ।
यज्ञ संपन्न होने के बाद जब स्वयम्भू ने दक्षिणा के लिए रावण को पूछा तो रावण ने 2 आग्रह किये पहला था स्वर्ण नगरी लंका और दूसरा था माता पार्वती।
स्वर्ण नगरी लंका को यह कह कर दान कर दिया की मुझे पता था कि हमारे भाग्य में विलासिता नहीं है और माता पार्वती को यह कह दिया की वो मेरे वश की बात नहीं है।
इतने में पर्वती ने आकर यह सब देखकर रावण को यह शाप दे दिया की यही नगरी जल कर राख बनेगी और रूद्र के अंश द्वारा ही ऐसा होगा तेरी राक्षस प्रवत्ति के कारण तू अब राक्षस कुल में रहेगा और तेरे कर्म दिन प्रतिदिन नीच होते जायेंगे और यही तेरी मृत्यु का कारण बनेंगे।

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