Monday, 6 March 2017

असम में धर्म परिवर्तन का धंधा

हर हर महादेव !!

भारत के सभी राज्यो का स्वतंत्रता के बाद से ही अत्यंत ही तीव्र गति से विकास होना आरम्भ हुआ था परंतु भारत के उत्तर पूर्वी राज्यो के साथ ऐसा कुछ नहीं हो पाया है आज के आधुनिक समय में भी असम,अरुणाचल,सिक्कीम के लोग स्वयं को भारत से कटा हुआ समझते है और गरीबी तथा अशिक्षा ने ऐसा पैर फैलाया है की दंगो का निज ताँता लगा रहता था। पूर्व काल में भारत के प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह जी भी वह से राज्यसभा के संसद रह चुके है तब भी वह पर विकास की कोई लहार तनिक मात्रा भी दिखाई नहीं दी।
अंग्रेजो के समय से ही अरुणाच भारत का पर्यटन स्थल रहा है परंतु अंग्रेजो  का वह पर रहना तथा विकास करना वहां के निवासियों की भलाई के लिए नहीं था अपितु स्वयं की भलाई के लिए था। जब भारत में इंग्लैंड वासी आये तथा उन्होंने भारत की जलवायु को देखा तो उन्हें आभास हो गया की ऐसी जलवायु में अधिक दिन जीवित रह पाना किसी चुनोती से अलग नहीं है। उस समय पर अंगेजो ने भारत में राज करने के लिए एक अलग योजना के विषय में सोचा तथा भारत के ठन्डे क्षेत्रो में अपने निवास स्थान और कार्यालयों को प्रभुत्व दिया जिस से उन्हें भारत की जलवायु में रहने का आदि बनने में सुगमता हो।
इसी के साथ उन्होंने आरम्भ किया भारत में धर्म परिवर्तन का धंधा आरम्भ में धर्म परिवर्तन पैसो के बदले तथा चिकित्सा के बदले में किया जाता था। यदि कोई व्यक्ति ज्वर से तड़प रहा है तथा वह हिन्दू है तो उसका निरिक्षण केवल और केवल तभी किया जायेगा जब वो ईसाई बन जायेगा इस मध्य चाहे वह व्यक्ति पीड़ा से मर ही क्यों न जाये लेकिन पूर्णतः ईसाई बनाने के बाद ही उसका निरिक्षण किया जाये ऐसा अंग्रेजो ने नियम बना लिया तथा ईसाई बनाने के बाद अत्यंत ही सुगमता से सुख सुविधा उपलब्ध कराइ जाने लगी जिससे लोगो का ईसाइयत के प्रति आकर्षण बढ़ने लगा तथा लोगो ने अपना धर्म त्यागना आरम्भ कर दिया।
अंग्रेजो ने भले ग्रामवासियो को यह तक पाठ पढ़ाया की तुम जिस प्रकार से ईश्वर की वंदना करते हो वह तरीका गलत है यदि तुम अंग्रेजी में ईश्वर की वंदना करोगे तब तुम्हे कोई भी कष्ट नहीं होगा और ईश्वर भी तुम्हारे साथ होगा। उन्होंने सभी दुखो का कारण केवल गलत ईश्वर की उपासना तथा गलत तरीके का उपयोग किया जाना बता दिया। भारतीयों ने अपने अत्यंत ही क्रूर उत्पीडन के बाद ये समझ लिया की वो सच में गलत ईश्वर तथा गलत तरीके से ईश्वर की वंदना कर रहे है।
इसके बाद यदि किसी भारतीय को उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाना हो तो उसे पहेल अपना धर्म परिवर्तन कर ईसाई बनना पड़ता था। आज के समय में भी ईसाई संस्थानों ने अपने पैर जमाये हुए है किसी भी प्रकार की आपदा प्राकतिक या फिर मानवनिर्मित आने पर इनका प्रथम कर्तव्य है "बाइबिल" बाँटना और लोगो को ये समझाना की दवाइयों से कुछ ठीक नहीं होता जो ठीक होता है वो केवल "प्रभु यीशु" से प्रार्थना करने से होता है।  आपदा से त्रस्त लोगो की भूख बाइबिल के पृष्ठ मिटायेंगे और घावों पर पट्टी की जगह उन्ही पृष्ठों को आसुओ में भिगो कर लपेटने से शारीरिक कष्ट दूर होगा। यदि कोई व्यक्ति गलती से चिकित्सालय पहुच भी जाये तो तड़प से प्राण त्यागने को आतुर होने पर उसे बाइबिल  लिखित ईश्वर वाणी सुनाई जाएगी जिस से उसकी पीड़ा कम ओ जाएगी और वह एकदम स्वस्थ होगा। मानव शरीर को कोई भी पीड़ा प्रभु यीशु की पीड़ा के समक्ष कुछ नहीं है ऐसा बता कर उनकी पीड़ा का मजाक बनाया जाता है।
प्रत्येक वर्ष लाखो करोड़ की विदेशी मुद्रा केवल इस लिए भारत में आती है जिस से भारत में रहने वाले हिन्दुओ को धर्मान्तरित कर ईसाई बनाया जा सके और भारत में ईसाइयत का प्रचार और प्रसार किया जा सके असम में सरकार का कोई भी हताक्षेप न होने के कारण वहाँ पर यह धंधा बिना किसी रोक टोक के चल रहा है क्योके सरकार वहाँ पर कोई विकास करना नहीं चाहती और ईसाई मिशनरिया वह पर अपने विद्यालयों और अस्पतालों का निर्माण कर उनमे इस काम को भली भाती चला रही है। कांग्रेस सरकार ने इस धंधे को बढ़ावा भी दिया था जिस से विदेशो में जमीन और विदेशी बैंको में धन प्राप्त हुआ उन्हें और मंदिरो को तुड़वा कर वह पर किसी परियोजना का बहाना बना कर धर्म का नाश करना तथा उन जगहों पर गिरजाघरों का निर्माण करना उनकी प्रवत्ति बन चुका था। उत्तराखंड में भी कुछ इसी प्रकार का निर्माण करने के बहाने से विश्वनाथ मंदिर का कुछ हिस्सा तोड़े जाने की वजह से उत्तराखंड में त्रासदी आना। धर्म विशेष के प्रति घृणा की भावना रखना तथा स्वयं के स्वार्थ के लिए कार्य करना केवल धन केलिए ये कोंग्रेस की नीति बन गई है।

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