हिन्दू पद्धत्ति के अनुसार मनुष्य के मरने के पश्चात उसके पार्थिव शरीरी को अग्नि के सुपुर्द कर उसे नाशवान किया जाता है कुछ जिज्ञासुओ का ये मनना है की ऐसा करना गलत है और ऐसा करने से कोई लाभ नहीं है। परंतु ऋषियों - मुनियो की इस भूमि को उनके कुतर्कों की कोई आवश्यता नहीं है पुरातन समय से हमारे पूर्वजो ने हमारी दिनचर्या में ऐसी आदतों को गढ़ा है जिसने आज हम अंधविश्वास कह कर टाल देते या कुतर्कों से उनका खंडन किया जाता है। समय जानो को इन बातो का ज्ञान न होने के कारण उन्हें अपने धर्म के मार्ग पर चलने में या तो कठिनाई होती है या फिर वो धर्म के विषय में चर्चा करने से घबराते है।
विषय है की अंतिम संस्कार दाह संस्कार ही क्यों है ?
जल में प्रावह कर या भूमि में दबा कर भी किया जा सकता है।
तर्क यह है की यदि हम जल में शव को प्रवाहित करेंगे तो जल दूषित होगा तथा यदि हम भूमि में दफ़न करेंगे तो भूमि दूषित भी होगी और एक समय ऐसा आएगा की सभी जगह शवो का ढेर बना होगा इस करण शव् को जलना ही उचित है परंतु जलने का अर्थ मिटटी तेल या कोई और ज्वलनशील पदार्थ से जलने से नहीं है।
कई बंधू लोग अंतिम संस्कार रीती में गए होंगे उन्हें पता होगा की शव् को जलाते समय उसपर काफी प्रकार की सामग्रियों का डाल कर दाह क्रिया को संपन्न किया जाता है सभी सामग्रियों का प्रयोग वातावरण को शुद्ध करने के लिए किया जाता है जिस से आस पास की वायु को नुक्सान ना हो वायु प्रदुषण ना हो।
हम सभी परमेश्वर को "भगवान्" के नाम से जानते है यदि इसका संधि विच्छेद किया जाये तो हमें एक शब्द भ+ग+व+आ+न प्राप्त होगा ये वही पञ्च तत्त्व है जिनसे हमारे भौतिक शरीर का निर्माण हुआ है।
भ से भूमि,ग से गगन,व से वायु, आ से आकाश और न से नीर मरणोपरांत हमारे शरीरी को इन्ही पञ्च तत्वो में विलीन किया जाता है।

अग्नि,वायु,आकाश तथा भूमि तो हमें दाह संस्कार से मिल जाती ही तथा उस से जगत का कल्याण वायु की शुद्धि कर किया जाता है अंतिम चरण होता है अवशेषो को जल में विलीन करना जो राख और हड्डिया पानी में डाली जाती है उन से पानी में कैल्शियम कमी दूर होती है और राख पानी में मिलने से जिस भी खेती की भूमि में जाता है वह भूमि उपजाऊ होती है।
पानी में कैल्शियम की वृद्धि से मछलिया ज्यादा होती है और जलचर प्राणी वृद्धि करते है जिस से जल का शुद्धिकरण होता है मछलिया जल की गन्दगी को ग्रहण जिस मल का त्याग करती है उस से जल की वनस्पति को खाद प्राप्त होती है।
दाह के समय जिन जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है उनसे बदलो में भारीपन होता है और वो बरसने के लिए त्तपर होते है आज के समय पर कृत्रिम वर्षा भी इसी ज्ञान को धयान में रख कर कराइ जाती है।
विषय है की अंतिम संस्कार दाह संस्कार ही क्यों है ?
जल में प्रावह कर या भूमि में दबा कर भी किया जा सकता है।
तर्क यह है की यदि हम जल में शव को प्रवाहित करेंगे तो जल दूषित होगा तथा यदि हम भूमि में दफ़न करेंगे तो भूमि दूषित भी होगी और एक समय ऐसा आएगा की सभी जगह शवो का ढेर बना होगा इस करण शव् को जलना ही उचित है परंतु जलने का अर्थ मिटटी तेल या कोई और ज्वलनशील पदार्थ से जलने से नहीं है।
कई बंधू लोग अंतिम संस्कार रीती में गए होंगे उन्हें पता होगा की शव् को जलाते समय उसपर काफी प्रकार की सामग्रियों का डाल कर दाह क्रिया को संपन्न किया जाता है सभी सामग्रियों का प्रयोग वातावरण को शुद्ध करने के लिए किया जाता है जिस से आस पास की वायु को नुक्सान ना हो वायु प्रदुषण ना हो।
हम सभी परमेश्वर को "भगवान्" के नाम से जानते है यदि इसका संधि विच्छेद किया जाये तो हमें एक शब्द भ+ग+व+आ+न प्राप्त होगा ये वही पञ्च तत्त्व है जिनसे हमारे भौतिक शरीर का निर्माण हुआ है।
भ से भूमि,ग से गगन,व से वायु, आ से आकाश और न से नीर मरणोपरांत हमारे शरीरी को इन्ही पञ्च तत्वो में विलीन किया जाता है।

अग्नि,वायु,आकाश तथा भूमि तो हमें दाह संस्कार से मिल जाती ही तथा उस से जगत का कल्याण वायु की शुद्धि कर किया जाता है अंतिम चरण होता है अवशेषो को जल में विलीन करना जो राख और हड्डिया पानी में डाली जाती है उन से पानी में कैल्शियम कमी दूर होती है और राख पानी में मिलने से जिस भी खेती की भूमि में जाता है वह भूमि उपजाऊ होती है।
पानी में कैल्शियम की वृद्धि से मछलिया ज्यादा होती है और जलचर प्राणी वृद्धि करते है जिस से जल का शुद्धिकरण होता है मछलिया जल की गन्दगी को ग्रहण जिस मल का त्याग करती है उस से जल की वनस्पति को खाद प्राप्त होती है।
दाह के समय जिन जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है उनसे बदलो में भारीपन होता है और वो बरसने के लिए त्तपर होते है आज के समय पर कृत्रिम वर्षा भी इसी ज्ञान को धयान में रख कर कराइ जाती है।
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