पितामहः भीष्म जब इच्छा मृत्यु का प्रण लेकर मृत्यु शय्या पर अपनी मृत्यु को रोक कर लेते हुए थे उस समय पर भीष्म के मन में यह बात कोंध गई की मेरी इस गति का कारण क्या है?
यद्यपि मैंने इस जनम में कोई गलत कार्य नहीं किया और ना ही गलत का साथ दिया वह तो केवल अपने वचन की बाध्यता को निभा रहे थे।
फिर भी उन्होंने अपने ज्ञान से यह पता लगा लिया की कोई भी बुरा कर्म उन्हें ऐसी मृत्यु नहीं दे सकता है अवश्य ही कोई पिछले जन्म का कर्म था जो उन्हें इस अवस्था में लाया है।
जिस प्रकार से उन्होंने अपने तपोबल से रणभूमि में श्री हरि के विराट रूप को देखा था
उसी तपोबल के प्रयोग से वो अपने पूर्व जन्मों के कर्मो को देखने में सक्षम थे।
सक्षम होना ही काफी नहीं था उनकी जिज्ञासा ही ऐसी एकमात्र वस्तु थी जिसने उन्हें पूर्व जनम देखने को विवश किया।
अपने अंतिम समय में उन्होंने सभी को ज्ञान दिया और अपने पापो को गिना यही उनके जीवन का सार है जब उन्होंने अपने कर्मो का संज्ञान लेना आरम्भ किया तब उन्हीने पाया कि कोई भी ऐसा कर्म नहीं था जिसके कारण उन्हें ऐसी गति प्राप्त हो न ही ऐसा जोई शाप लगा जिस से उन्हें मृत्यु के इतना निकट रहते हुए भी प्राण त्यागने की अनुमति ना मिले ।
स्वर्ग में स्थित शांतनु की दिव्य आत्मा ये सब देख कर रुंध गई थी और उन्होंने स्वर्ग के सभी भोग विलास ऐश्वर्या को त्याग करना आरम्भ कर दिया था और स्वयं को कोसने लगे थे की क्यों उन्होंने भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया?
जिस पुत्र ने अपने पिता के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत धारण किया और राज पाठ का त्याग तक किया उस पुत्र को दिया हुआ वरदान आज शाप क्यों बन गया?जन्मो तक देख आये और थक कर स्वयं को कोसने लगे की ऐसी क्या भूल हुई के ये गति प्राप्त हुई है।
तभी जगतगुरु श्री कृष्णा का वहाँ आना होता है
प्रिय प्रभु भीष्म का मुख देख कर ही जान लेते है की उनके मन की क्या जिज्ञासा है ?
भीष्म कहते है की प्रभु ऐसी क्या गलती हुई की मुझे इस जन्म में ये गति प्राप्त हुई है ऐसा कोनसा पाप कर्म हुआ है जिसके कारण मुझे मेरे पोत्र के द्वारा ही बाणों से बिंध दिया गया गया ?
तब श्री कृष्णा ने कहा की आप अपने पूर्व जन्मो को देखने में सक्षम है आप खुद ही देख लीजिये।
भीष्म ने कहा की मैंने अपने पिछले 100 जन्मो को देख लिया है परंतु कोई ऐसा पाप दिखाई नहीं दिया जिस कारण ये दशा प्राप्त हो।
कृष्णा जी ने एक जनम और देखने का आग्रह किया और भीष्म ने देखा की पूर्व जन्म में वह एक प्रजाप्रिय राजा थे और उनका रथ राज्य के भर्मण के लिए जा रहा था तभी एक सैनिक आकर यह बताता है की राह में एक सर्प घायल अवस्था में पड़ा है और यदि हम आगे बढे तो उसकी मृत्यु का पाप हमें लगेगा।
राजा ने सर्प को उठा कर निकट की झाड़ियो में फेकने का आदेश दिया जिस कारन सर्प निकट की झाड़ियो में काँटों के ऊपर गिर गया और काँटों से बींधने से उसके प्राण पखेरू उड़द गए।
ये देख भीष्म के नेत्र खुलते हैं और एक प्रश्न प्रभु की और कहते है कि वो पाप तो अनभिज्ञता वश हुआ है उसका ऐसा परिणाम क्या उचित है?
प्रभु ने कहा कि पाप कितना ही छोटा क्यों न हो उसका परिणाम किसी न किसी जन्म में भुगतना पड़ता है तुम्हारे पुण्यकर्मों ने उन दंड को 100 जन्मो तक दूर रखा परंतु अंततः उसका परिणाम भुगतना ही पड़ा।
अपने कर्मो से कही नहीं भागा जा सकता है यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसके कर्म उसे और अधिक तीव्र गति से उसके पीछे आते हैं।
परमपिता ब्रह्माजी ने सभी मनुष्यो के आगे आने वाले जन्मो का जीवन उनके पिछले जन्मो के आधार पर रखा है यदि आप इस जन्म में दिव्य कर्म करेंगे तो अगले जन्म में आपका जीवन भी दिव्य होगा।
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