Thursday, 8 December 2016

ॐ (OM) उच्चारण के 11 शारीरिक लाभ

ॐ (OM)  उच्चारण के 11 शारीरिक लाभ :

ॐ : ओउम् तीन अक्षरों से बना है।
अ उ म् ।
"अ" का अर्थ है उत्पन्न होना,
"उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास,
"म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना।
ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है।
ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है।
जानीए
ॐ कैसे है स्वास्थ्यवर्द्धक और अपनाएं आरोग्य के लिए ॐ के उच्चारण का मार्ग...

● *उच्चारण की विधि*

प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें। ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं। ॐ जप माला से भी कर सकते हैं।

01)  *ॐ और थायराॅयडः*
ॐ का उच्चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है जो थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।

*02)  *ॐ और घबराहटः-*
अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं।

*03) *..ॐ और तनावः-*
यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।

*04)  *ॐ और खून का प्रवाहः-*
यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है।

*5)  ॐ और पाचनः-*

ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है।

*06)  ॐ लाए स्फूर्तिः-*
इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।

*07)  ॐ और थकान:-*
थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।

*08) .ॐ और नींदः-*
नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है। रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चिंत नींद आएगी।

*09) .ॐ और फेफड़े:-*
कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है।

*10)  ॐ और रीढ़ की हड्डी:-*
ॐ के पहले शब्द का उच्चारण करने से कंपन पैदा होती है। इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है।

*11)  ॐ दूर करे तनावः-*
ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है।
आशा है आप अब कुछ समय जरुर ॐ का उच्चारण करेंगे । साथ ही साथ इसे उन लोगों तक भी जरूर पहुंचायेगे जिनकी आपको फिक्र है ।
अपना ख्याल रखिये, खुश रहें ।

Saturday, 8 October 2016

नारायण का समर्पण

आज के समय पर किसी को भी भागवत कथा में रूचि नहीं रही परंतु उस से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों को पढ़ने का समय अवश्य है।
क्या प्रभु ने कभी किस के समक्ष समर्पण किया है ?
इसका जवाब है हाँ.... 
प्रभु ने तीन दैत्यों अथवा राक्षसों के समक्ष समर्पण किया है 
१. वानर राज बाली 
जैसा की सभी को पता है की बाली के पास ऐसी शक्ति थी जिस से उस के समक्ष खड़े योद्धा की आधी शक्ति उस में आ जाती थी तब श्री राम ने उसे मारने के लिए छिप कर तीर चलाया था।इसके बाद श्री राम जब बाली के समक्ष आये तब बाली ने मारने का कारण पुछा तो रामजी ने छोटे भाई का राज्य हथियाने और उसकी पत्नी को अपनी कैद में रखने का कारण बताया। तब बाली ने पुछा की ये नियम किसने किसके लिए बनाये ?
रामजी ने कहा ये नियम महर्षि मनु ने मनुष्यो के लिए बनाये। 
तब बाली ने कहा प्रभु में तो वानर हूँ मुझपर ये नियम कैसे लग सकते है ?

2. राजा बलि 
जब प्रभु ने वामन अवतार लिया और बलि से ढाई पग भूमि मांगी तब बलि ने बड़ी विनम्रता से कहा की वामन थोड़ा ज्यादा मानगो तब वामन देव ने कहा,नहीं इतना ही देदो। बलि ने कहा नाप लो किसी भी दिशा में ढाई  पग भूमि। प्रभु ने तभी विराट रूप धारण किया और १ पग में धरती दूसरे में आकाश नाप दिया फिर पुछा आधा पग कहां पर रखु  ?
बलि ने कहा प्रभु जब मांगे थे तब तो नन्हे नन्हे पग थे जब नापने लगे तब पग विराट कर लिए ये कहाँ का न्याय है ?
इस पर प्रभु ने कहा की न्याय नहीं है इसी लिए आज से तुम्हे में पाताल लोक का राजा बनाता हु। 

3 . कालिया नाग 

श्री कृष्णा बचपन में यमुना के किनारे खेलते थे एक बार जब खेलते हुए गेंद यमुना के पानी में गिर गई तब सबने कहा की इस गेंद को कोई नहीं निकलेगा क्योके यमुना में कालिया नाग रहता है और उसके विष से सब मर जाते है तब श्री कृष्ण गेंद निकलने यमुना में उतरे और कालिया नाग के सामने गए तो कालिया नाग ने उनपर भी विष से आक्रमण किया तब श्री कृष्णा ने कालिया को बंधक बना कर उसका फन कुचलने के लिए जैसे ही पग आगे बढ़ाये तब कालिया नाग की पत्नी आई और उसने कृष्णा जी से रुकने का आग्रह किया। 
कृष्णा जी ने रुक कर कहा की ये सभी को अपने विष का शिकार बनाता है इस लिए इसका मर जाना ही उचित है। 
तब कालिया नाग बोला की प्रभु ये सृस्टि आपकी रचना है इसमें जिसके पास जो भी है वो आपकी इच्छा से है मेरे मुख में विष भी आप ही की देन है यदि ये गलत है तो आपको मेरे मुख में अमृत देना चाहिए था तब में सभी पर अमृत की वर्षा करता। 
ये सुनकर श्री कृष्णा रुक गए और कालीया नाग को जाने दिया। 



















Saturday, 1 October 2016

ताशकंद धोखा

भारत ने अपने युद्धो के इतिहास में तीन निर्णायक युद्ध लाडे आई जिनमे से २ पकिस्तान से और एक चीन से लड़ा है। भारत का १९६५ का निर्णायक युद्ध जो की पकिस्तान की सेना का मानसिक संतुलन खो जाने के कारन से हुआ था और वो कुछ पकिस्तान को दिए अमेरिकी युद्धक टेंको की वजह से भी हुए थे। अमेरिका ने पकिस्तान को गरीब देश समझते हुए और एशिया महाद्वीप पर अपना कब्ज़ा करने के लिए पकिस्तान को सहायता करने का मन बना लिया था और उसी कारन उसने पकिस्तान को अपने युद्धक टैंक जो की उस समय पर किसी भी थल युद्ध को जितने में सक्षम थे।
भारतीय सेना का मनोबल तोड़ने के लिए केवल इतना ही काफी था युद्ध में पेटेंट टैंक का प्रयोग किया जा रहा है लेकिन हर हर महादेव के ललकारे लगा कर वाहेगुरु के खालसो ने ऐसा प्रचंड तांडव मचाया की पाकिस्तानी सेना के पाँव उखड गए और उन्होंने पेटेंट टेंक को केवल एक छल समझा और वहां से भाग खड़े हुए। 
इस यद्ध का एक और पहलु ये है की जिस स्थान पर युद्ध किया जा रहा था वहां पर एक प्राचीन मंदिर है जिसे "तनोट माता" का मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर की विशेषता ये है की पकिस्तान ने यहाँ पर 3000 बम गिराए परंतु फट एक भी नहीं। इसे मात्र एक संयोग नहीं कहा कहा जा सकता। चमत्कार का अंत यही नहीं हुआ थार के उस रण छेत्र में जो घर मंदिर छेत्र में थे उन्हें भी कोई ज्यादा क्षति नहीं पहुची उसके बाद पकिस्तान के जिन सैनको ने सीमा पर पर भारत भूमि पर कदम रखा और माता के मंदिर की तरफ बढे वो सभी अंधे हो गए ऐसी किवदंती है। 
इस युद्ध में भारत में पकिस्तान के 90 टैंक उसकी जगह पर खड़े खड़े ही ध्वस्त कर दिए और 200 से अधिक सैनिको को युद्ध भूमि में मार गिराया। आज भी वो सभी पाकिस्तानी या यें कहे की अमेरिकी टैंक भारत की छावनियों में रखे हुए है और अमेरिका को भारतीय वीरता की गाथा सुना रहे है। 
ऐसा ही कुछ अवाक्ष विमानों के साथ हुआ था और अमेरिका को मुह की खानी पड़ी थी। 
युद्ध हथियारों से नहीं होसलो से जीते जाते है ये भारतीय सेना से दुनिया को दिखा दिया है। 
इसके बाद हुआ ताशकंद  समझौता जिसमे की पकिस्तान ने रूस की सहायता से भारतीय प्रधानमंत्री श्री लाल बहाद्दुर शास्त्री जी को ताशकंद में ही मरवा दिया। 
इसके बाद जब उनके शव को भारत लाया गया ता बिना किसी चिकित्सक जाँच के उनकी अन्तयेष्टि कर दी गई। 
क्या यह जानना उचित नहीं था की जो कारन रूस ने दिया है क्या वो सही है या उसमे कुछ खोट है ?
शास्त्री जी की पत्नी के अनुसार उनके शव का रंग नीला पड़ चूका था जो की जहर देने का मुख्य लक्षण है और यदि चिकित्सक जांच की गई होती तो उनके शव का रंग शायद और भी अधिक नीला पड़ सकता था। 
उनको हृदय घात समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद आया था जबकि ऐसा कोई करना नहीं था जिसकी वजह से उन्हें हृदय घाट हो सके न ही उन्हें कोई रोग था न ही उन्हें किसी भी प्रकार का मोटापा था और न ही उन्हें कोई परेशानी थी अगर वो ह्रदय से कमजोर होते तो युद्ध का नाम सुनते ही ह्रदय घात से पीड़ित हो जाते लेकिन कठिन परिस्तिथियो का सामना उन्होंने बचपन से किया था और गरीबी और भूख को उन्होंने पास से देखा था  स्वतंत्रता के लिए कई बार जेल भी गए थे और यातनाये भी भोगी  थी इसके बाद भी उन्हें हृदय घात नहीं हुआ। 

Saturday, 24 September 2016

बुद्ध अथवा मोहिनी ?

जिस प्रकार से गूगल पर अगर हम ये खोजना आरम्भ करे की विष्णु के 10 अवतार क्या है तब उनका उत्तर कुछ इस प्रकार से है
1.मत्स्य 
2. कूर्म 
3. वराह 
4.वामन 
5.नरसिंह 
6.परशुराम 
7.राम 
8.कृष्ण 
9.बुद्ध ???????
एक लंबे समय से विकिपीडिया पर ये भ्रम फैलाया जा रहा है की हिन्दू आराध्य देव ने अपना अंतिम अवतार बुद्ध के रूप में  लिया था जो की पूर्णतयः गलत है ये केवल एक भ्रम है जो हिन्दुओ को भटकने के लिए फैलाया जा रहा है .
पुराणों के अनुसार श्री विष्णु ने अंतिम अवतार श्री कृष्णा के रूप में लिया था लेकिन कुछ महनुवदो ने बुद्ध को भी विष्णु का अवतार बता दिया है तथा 10वां अवतार कल्कि के रूप में होना है और वह जो एक अवतार को गिनती से हटाया गया है वो है मोहिनी अवतार.
मोहिनी अवतार को गिनती से हटाना सरल इस कारण हुआ क्योके वो एक स्त्री का अवतार थी तथा उन्होंने जन्म भी नहीं लिया था.अगर देखा जाये तो जन्म के प्रमाण तो वराह,कूर्म,मत्स्य तथा नरसिंह के भी नहीं है तो क्या इन्हें भी अवतार नहीं माना  जायेगा?
सत्यता ये है की कुछ बोद्ध लोगो ने बुद्ध का गुणगान करने के लिए तथा बुद्ध को सर्वोपरि दिखने के लिए ऐसा किया है ये सर्वथा निरर्थ है क्योके हिन्दू पुराणों के अनुसार 10वा अवतार कल्कि है और कल्कि का अवतार तब होगा जब मनुष्य की आयु 12.5 वर्ष रहयेगी उसकी ऊंचाई एक पौधे जितनी और वह सारे संस्कार भूल जायेगा तब धर्म की रक्षा के लिए श्री हरी अवतार लेंगे और मानव जाती का उद्धार करेंगे। 

Saturday, 17 September 2016

अकबर महान ?



सभी भारतीय पुस्तको के अनुसार भारत में केवल 2 ही ऐसे व्यक्ति है जिन्हें महान कहा जाता है।
१. सम्राट अशोक
यदि इनको महान नहीं कहा गया तो लोगो को पता किस प्रकार चलेगा की महान किसे कहते है ?
और इनके इतिहास के साथ भली भांति बदलाव किया गया है जैसे की सभी को पता है की अशोक ने अंत समय में बोद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया था लेकिन परंतु इस बात की सत्यता कितनी है इसके विषय में कुछ कह पाना कठिन है कुछ इतिहासकारो ने इस बात को केवल मुगलो की मनघडंत कथा बताया है।
सम्पूर्ण भारत में ऐसा कोई राजा नहीं हुआ जो अशोक से युद्ध में जीता हो क्या भारत जैसी वीरभूमि में ऐसा संभव था ?
अशोक ने इतनी बड़ी सेना बनाई जो किसी भी राजा के पास नहीं थी इतनी बड़ी सेना रखना और उनका भरणपोषण करना सरल कार्य नहीं होता या तो अशोक के पास सेना नहीं थी या फिर अशोक अपनी प्रजा से अत्यधिक कर वसूलता था जिस से राज्य भली भांति चलाया जा सके इतिहासकारो ने कही पर तो गलती की है।
हिन्दू परंपरा में ४ आश्रम होते है ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास।
ब्रह्मचर्य और गृहस्थ आश्रम में रहकर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की शिक्षा लेते हुए व्यक्ति को 50 वर्ष की उम्र के बाद वानप्रस्थ आश्रम में रहकर धर्म और ध्यान का कार्य करते हुए मोक्ष की अभिलाषा रखना चाहिए अर्थात उसे मुमुक्ष हो जाना चाहिए। ऐसा वैदज्ञ कहते हैं।
क्या ये नहीं कहा जा सकता की अशोक ने वामप्रस्थ आश्रम को स्वीकार कर लिया था ?
इतिहासकारो के लिए ये एक विषय है कृपया चर्चा करें।
दूसरे महान है अकबर
अकबर के विषय में कहा जाता है की वो एक सुन्दर सुडौल शरीर का मालिक था तथा उसके बल के विषय में तो और भी अच्छे किस्से प्रचलित है। कई इतिहासकार अकबर को सबसे सुन्दर आदमी घोषित करते हैं. विन्सेंट स्मिथ इस सुंदरता का वर्णन यूँ करते हैं-
“अकबर एक औसत दर्जे की लम्बाई का था. उसके बाएं पैर में लंगड़ापन था. उसका सिर अपने दायें कंधे की तरफ झुका रहता था. उसकी नाक छोटी थी जिसकी हड्डी बाहर को निकली हुई थी. उसके नाक के नथुने ऐसे दीखते थे जैसे वो गुस्से में हो. आधे मटर के दाने के बराबर एक मस्सा उसके होंठ और नथुनों को मिलाता था. वह गहरे रंग का था”
अकबर ने सभी को समानता का अधिकार दिया वो चाहे कोई भी हो लेकिन ये बात भी धयान देने योग्य है की अकबर एक अंगूठा छाप व्यक्ति था और उसकी जीवनी उसी के एक सेवक ने लिखी थी जो की आज के आधुनिक समय पर हम कीटो को पढाई जा रही है।आज के समय में अकबर जैसे बलात्कारी और व्यभिचारी का महिमामंडन हृतिक रोशन जैसे कलाकारों से कराया जा रहा है और उसी के साथ शिवाजी जैसे राष्ट्रभक्त को अपमानित करने में कोई भी त्रुटि नहीं दिखाई जा रही।अकबर की एक जीवनी उसके बेटे ने भी लिखी थी जो की इलाहबाद के पुस्तकालय में उपलब्ध है परंतु उसे कोई पढ़ने में रूचि नहीं रखता सत्य को छिपा कर रखा गया है और असत्य का बोलबाला है।
अब समझने का विषय ये है की कोई भी सेवक अपने स्वामी की बुराई किस प्रकार से लिख सकता है ?


Monday, 12 September 2016

सदभावना

भारतीय संविधान के अनुसार सभी व्यक्तियों को उनके अनुसार जीवन यापन करने का अधिकार है।
परंतु कभी कभार यही भारतीय संविधान अपने ही कुछ लोगो के साथ भेदभाव की भावना रखता है जैसे की भारत में हिन्दू पर्वो पर एक आधिकारिक सुचना जारी की जाती है की होली पर पानी की बर्बादी न करे और दीवाली तथा दशहरे पर पटाखे न फोड़े छठ पूजा पर नदी में गन्दगी न करे इत्यादि।कुछ प्रदेशो में तो हवन इत्यादि पर भी रोक है जैसे की कर्णाटक और बंगाल ये भारत के ऐसे राज्य है जिनमे हिन्दुओ की आवाज को कुत्तो और बिल्लियों की आवाज समझा जाता है इसके बाद है भारत के पूर्वी हिस्से जिन्हें भारत के नादर समझा ही नहीं जा रहा था।  केवल कुछ ही वर्षो में भारत के पूर्वी राज्यो को ईसाई राज्य बना दिया गया था वो भी केवल इस लिए की वहां पर सरकार कुछ करती नहीं थी और वह पर कोई सुनवाई नहीं थी। 
भारत के अंदर सरकार की नाक के निचे धर्मान्तरण करने वाले केवल और केवल ईसाई है। ऐसा नहीं है की सभी ईसाई बुरे है या कुछ ऐसा ही दक्षिण भारत में शुद्रो को ये प्रलोभन देकर की आप ऊँची जात के बन जाओगे उनका धर्मान्तरण किया जा रहा है। पूर्वी भारत में बीमारो को दवा के नाम पर ईसाई बनाया जा रहा है। बंगाल में डंके की चोट पर हिन्दू बहन बेटी का बलात्कार कर मुस्लिमो को हवा दी जा रही है उत्तर प्रदेश में समाजवादी नेताओ ने मुस्लिमो को 42 प्रतिशत बता कर हिन्दुओ का मनोबल तोड़ने का प्रयास जारी है। 
सभी को याद होगा की किस प्रकार से 2014 में प्रधानमंत्री जी के टुकड़े टुकड़े करने की धमकी दी जा रही थी और वही रुड़की में कांवड़ के समय पर मुस्लिमो द्वारा एक बड़ा पंडाल लगा कर कांवड़ियों की सेवा की जा रही थी। 
देश में दंगा करने की साजिश कुछ शक्तिशाली लोगो ने की है लेकिन सभी लोग प्रत्यक्ष रूप से  बुरे नहीं है। 
मेरठ के बड़े भाजपा नेता संगीत सोम और गोरखपुर के योगी आदित्यनाथ के नाम पर कुछ लोगो ने हिंसा करनी चाही परंतु ऐसा हो सका। जो नेता स्वाम को गरीबो और मुस्लिमो का संरक्षक कहता था वो रोहित वेमुला और उन्ही जैसे लोगो के मरने पर गायब था और राज्यसभा में भाजपा को कोसने के परोक्ष कोई काम नहीं है उसका जब किसानों ने आत्महत्या की उस समय पर वह देखने भी नहीं आया और एक मुस्लिम व्यक्ति के मरते ही हैदराबाद के सरे कामो को  स्थगित नमाज अदा  करने आ गया। 
सार ये है की अच्छा वही है जो सभी को एक नजर से देखे।

Saturday, 10 September 2016

पृथ्वी नाम के रहस्य

अधिकतर लोगों को ये नहीं पता की जिस जगह पर हम आहट हैं उसे पृथ्वी क्यों कहते है ?
किसने रखा इसका नाम पृथ्वी ?
क्या अर्थ है इस नाम का ?
ग्रंथो के अनुसार इस नाम का रहस्य कुछ इस प्रकार है
सृष्टि की रचना के समय भगवान विष्णु ने धरती को अनंत जल से निकालकर जल के ऊपर स्थित किया। लेकिन काफी समय तक धरती उबड़-खाबड़ रही। धरती पर रहने वाले लोग कंद मूल एवं फल खाकर भगवान के ध्यान में मग्न रहते थे। कृषि और उन्न उगाने का काम नहीं होता था। संगठित शासनतंत्र और समाज का निर्माण भी नहीं हुआ था। त्रेतायुग के आरंभ में पृथु का जन्म हुआ। इनके पिता का नाम वेन था।
वेन असंगठित शासन व्यवस्था का संचलन करता था। लेकिन इनकी व्यवस्था अच्छी नहीं थी। ऋषि मुनि इनके व्यवहार और अत्याचार से दुःखी हो गये और एक कुशा को अभिमंत्रित करके उससे वेन को मार डाला।वेन के मरण पश्चात हालात और भी दुर्भर हो गए अब प्रजा को कोई पालक न रहा प्रजा अस्थिर होने लगी पहले से भी ज्यादा लूटमार और  लगी तब ऋषियों ने वेन के मृत शरीर का मंथन किया इससे सबसे पहले एक काला व्यक्ति प्रकट हुआ जो केवट कहलाया। वर्तमान में इसे मछुआरा कहते हैं।

इसके बाद पुनः बाजूओं का मंथन करने पर पृथु उत्पन्न हुए। पृथु भगवान विष्णु के अंश से प्रकट हुए थे। वेन के अत्याचारपूर्ण व्यवहार के कारण पृथ्वी ने फल-फूल उत्पन्न करना बंद कर दिया था जिससे लोग व्याकुल हो रहे थे। पृथु ने धरती को अन्न तथा मनुष्य की उन्नति के लिए संसाधन प्रदान करने के लिए कहा। इस पर धरती ने कहा कि मनुष्य को कर्म करना होगा।

धरा को समतल करके खेती करनी होगी। परिश्रम पूर्वक धरती का दोहन करना होगा। जब मनुष्य ऐसा करने लगेगा तो मनुष्य खुशहाल हो जाएगा और उसे हर संसाधन प्रदान करूंगी। पृथु ने सबसे पहले भूमि को समतल करके खेती शुरू की और समाजिक व्यवस्था की आधारशीला रखी। लोगों ने कंदराओं को त्यागकर घर बनाकर रहना शुरू कर दिया।

जन समुदाय ने ऋषियों के साथ मिलकर पृथु को धरती का पहला राजा स्वीकार किया। पृथु ने धरती को अपनी पुत्री रूप में स्वीकार किया और इसका नाम पृथ्वी रखा। इस तरह संसार में कृषि एवं सामाजिक व्यवस्था की शुरूआत हुई। राज बनने के बाद पृथु ने धर्म पूर्वक, बिना किसी भेद-भाव के जनता की सेवा का वचन लिया। शतपथ ब्राह्मण नामक ग्रंथ में इस बात का उल्लेख किया गया है।
नोट : सभी युगों के अंत में उस युग की तकनीक विलुप्त हो जाती है इसका अर्थ ये है की त्रेता युग से पहले भी शासन व्यवस्था थी परंतु वो युग के अंत में नष्ट हो गई थी। 

Saturday, 3 September 2016

कश्मीर: स्वर्ग अथवा मिथ्या ?

इस धरती पर अगर कही स्वर्ग है तो वो केवल कश्मीर है.
ऐसा में नहीं कह रहा ऐसा कहती है पुस्तके और कुछ इस्लामी कवि
ये बात कितनी सच है और कितनी नहीं इसका विश्लेषण करना कठिन है क्योके ना ही में कभी वहां गया हूँ और न ही हम में से कुछ अधिकतर। कश्मीर एक ऐसी जगह है जहा पर हर दिन दंगे और फसाद होते है फिर भी वो  स्वर्ग की श्रेणी में रखा जाता है जबकि  ऐसा बिलकुल नहीं है।
कश्मीर एक समय पर स्वर्ग हुआ करता था जिस समय पर वह पर केवल पंडित रहा करते थे लेकिन जैसे ही मुगलो की नजर वहां पर पड़ी वो स्वर्ग केवल कहानियो और किस्सो में ही रह गया।
एक समय था जब कश्मीर का वातावरण शांतिप्रिय था तब चीन का कोई वर्चस्व नहीं था चीन स्वयं को विकसित करने में लगा हुआ था उसके बाद पकिस्तान का जनम हुआ और फिर 40 % भाग पकिस्तान का हो गया उसमे से भी कुछ भाग को वो धोखे से लेना चाह रहा है जो की वर्त्तमान प्रधान मंत्री को बिलकुल भी पसन्द नही है।
समस्या का आरंभ हुआ मुगलो से जब उन्होंने देखा की कश्मीर का वातावरण एकदम विस्मयकारी है वहां पर रहने वालो की आयु औसतन भारतीयों से अधिक है और उसके बाद प्राकृतिक औषधीयां  भरपूर मात्रा में है ऐसी औषधीयां जो बुढ़ापे को भी रोक दे तब उनका मन हुआ की यही पर रह जाये और बस यही रहे लेकिन वहां रहकर सत्ता को संभालना इतना भी आसान नहीं था तो बादशाहो ने अपने सम्बन्धियो और दरबारियो को जो की सभी मुस्लिम में उनको वहां की जलवायु को ख़राब करने के लिए रख छोड़ा और फिर आरम्भ हुआ उस जगह पर हिन्दुओ का विध्वंस और सूफियों का मनघड़ंत शांति सन्देश। ये सब  झेलने के बाद बाद में पकिस्तान का हस्तक्षेप और पकिस्तान की ये बात माननी पड़ेगी की सभी जगहों को बड़े चुन चुन कर लिया है पंजाब को उपजाऊ छेत्र रजिस्थान का मरुस्थल भारत का कश्मीर और पश्चिमी पकिस्तान के  नाम पर पकिस्तान २ जगह ले लिया।  उसके बाद अलगाव वादियो ने कश्मीर को भारत से अलग करने की काफी चेस्टा की जो की अभी तक जारी है लेकिन ये समझने वाली बात है की जिस जगह पर मुस्लिमो ने शाशन किया वो जगह विध्वंस से भर गई भगवत गीता में कहा गया है जब कोई एक जाती या धर्म अत्यधिक हो जाता है वो समय उसके विध्वंस का होता है जिस प्रकार ने महाभारत में हिदुओ ने हिन्दुओ को मार कुछ समय बाद वार्तामन विश्व का भी यही हाल होने वाला है।
जनसंख्या को कम करने का ये भी एक उपाय है महाभारत में भी इसी प्रकार से जनसँख्या को कम किया गया और प्रकर्ति में संतुलन बनाया गया।


Wednesday, 24 August 2016

श्री कृष्णा -जन्म तथा मृत्यु

जैसा की सभी पौराणिक कथाओ के अनुसार कहा गया है की श्री कृष्णा का जन्म आज के दिन रात्रि १२ बजे हुआ था लेकिन सभी लोगो को ये नहीं पता पता है की श्री कृष्ण की मृत्यु का क्या कारन था ?
आज के इस पोस्ट में कुछ इसी प्रकार का वर्णन है कृपया कही कोई त्रुटि हो जाये तो क्षमा  करें।
बात श्री राम के समय  की है जब श्री रामजी वानर राज सुग्रीव के साथ मिलकर बाली को मारने जाते है उस समय पर सुग्रीव,श्री राम को बाली के पास होने वाली शक्तियों से भी परिचित करा देता है।
श्री राम को जब इस बात का पता चला की बाली के पास ऐसी शक्ति है जिस से उस से लड़ने वाले की आधी शक्ति बाली के अंदर आ जाती है तो श्री राम ने बाली को प्रत्यक्ष रूप की जगह परोक्ष रूप से मुक्ति प्रदान करना उचित समझा जिस समय बाली और सुग्रीव का युद्ध हो रहा था उस समय पर श्री राम ने एक पेड़ की ओट में छिपकर बाली पर तीर चलाया और बाली को मुक्ति के निकट पहुचाया     बाली ने प्रभु को देखते ही प्रणाम किया और कहा की प्रभु आप तो मर्यादा पुरुषोत्तम हो आपने इस प्रकार छिपकर मेरा वध क्यों किया ?
प्रभु ने जवाब दिया की जो व्यक्ति अपने छोटे भाई की पत्नी और राज्य का हनन करता है उसके लिए यही मर्यादा है।
तब सुग्रीव ने पूछा की प्रभु ये सभी नियम किसने बनाये है और किसके लिए बनाये है ?
श्री राम ने जवाब देते हुए कहा की  ये सभी नियम महर्षि मनु ने समस्त मानव जाती के लिए  बनाये हैं।
उस समय बाली ने कहा की प्रभु ये बात आपकी सत्य है परंतु ये नियम वानरों के लिए नहीं है और में मानव नहीं वानर हु।
तब रामजी ने कहा की ये सही है इसके लिए अगले जन्म में में पूर्ण रूप में होऊंगा और तुम मानव रूप में और उस समय तुम मेरी मृत्यु का कारन बनोगे। यथावत अगले जन्म में श्री कृष्णा की मृत्यु का कारण एक मानव बनता है जो की श्री कृष्णा के समक्ष कुछ नहीं था। 

Tuesday, 23 August 2016

निरंकार ओमकार

बंधुओ मैंने अपने पहले ब्लॉग में ॐ का  विवरण लिखन को कहा था।
आज में थोड़ा सा जो भी मुझे पता है  उसे लिखने का प्रयास करूँगा।
ॐ एक ऐसा शब्द है जो इस पृथ्वी पर पहली बार सुना गया जिस प्रकार रात के समय कोई भी ध्वनि न होने के कारन हम घडी के काटो की टिक टिक की ध्वनि भी बड़ी सरलता से सुन लेते है उसी प्रकार उस समय पर भी यही हुआ था एक ओमकार ही ऐसा शब्द था जो पृथ्वी के वातावरण में गूंज रहा था जिसके बाद से ही सब कुछ स्थापित हुआ है।
कुछ समय पहले कुछ वैज्ञानिको ने सूर्य पर होने वाली ध्वनि सुनी जो की ॐ के ही जैस अथवा ॐ ही थी शायद ये वही से हुआ हो पृथ्वी के उथल पुथल होने के बाद जब कोई व्यक्ति बचा हो जिसने ऐसा सुना हो या ग्रंथो के अनुसार ही कुछ हुआ हो जैस की लिखा है की धरती का उद्भव ओमकार ने किया है।
सभी हिदुओ ने  देवताओ के मंदिर देखे होंगे परंतु कभी ओमकार का मंदिर नहीं देखा जैसे की मुस्लिमो ने कभी अल्लाह को नहीं देखा बस नाम लिखा जा सकता है और एक चिन्ह ७८६ से प्रदर्शित किया जा सकता है वैसे ओमकार भी है।
सभी श्रुतियो के अनुसार मुस्लिम  धर्म का उद्धभव बाद में हुआ है तो शायद उन्होंने भी यही देखा हो और मूर्तिपूजा को आडम्बर मान कर उन्होंने निरंकार निर्गुण को अपना प्रभु स्वीकार किया हो।
जिस प्रकार से मुस्लिमो ने अपने अल्लाह को बताया है उसी प्रकार से हिन्दू जानो ने ओमकार का वर्णन किया है केवल एक प्रकाश जहा कुछ दिखाई नहीं देता केवल उजला उजला प्रकाश एक शांति का अनुभव जो कभी किसी ने नहीं किया। 

Sunday, 21 August 2016

रावण -एक महावीर योद्धा एक ब्राह्मण एक राक्षस

मित्रो रामायण के महानायक और खलनायक के विषय में तो सभी ने सुना होगा लेकिन इन खलनायको और नायको का यहाँ पर आना कैसे हुआ ये भी एक विषय है। बात उस समय की है जब प्रभु श्री हरी अपनी शैय्या पर विश्राम कर रहे थे और उनके द्वारपाल द्वारो पर पहरा दे रहे थे तभी बाल ऋषि वह पधारे और कहने लगे की प्रभु  से मिलना है और  मिलकर प्रभु से कुछ चर्चा करनी है।
इसपर द्वारपालों ने कहा की प्रभु के विश्राम का समय है अभी नहीं मिल सकते
बार बार आग्रह करने पर भी जब द्वारपाल नहीं मने तो दोनों को बाल ऋषियों ने शाप दिया की तुम सैकड़ो जन्मो तक पृथ्वी पर राक्षसों की तरह दुःख भोगोगे।
इनते में शोर सुनकर प्रभु बाहर आये और शाप वापस लेने की विनती करने लगे इसपर बाल ऋषियो ने कहा की हम वापस तो नहीं ले सकते लेकिन शाप कम कर सकते है तब  उन्होंने कहा की शाप में तुम दोनों को या तो 7 जन्म प्रभु की कठोर भक्ति करनी होगी या फिर ३ जनम प्रभु  से शत्रुता।
तब जय और विजय ने शत्रुता स्वीकारी और तीन जन्मो में रावण-कुम्भकरण,कंस-शिशुपाल और हिरण्यकश्यप-हिरण्यकश्यपु।
तीनो ही जन्मो ने  दोनों भाई एक से बढ़कर एक शक्तियाँ प्राप्त की और श्री हरी को मारने का प्रयास किया अपने शाप की मुक्ति के लिए और  शाप मुक्त किया।
रावण ने चारो वेदों का ज्ञान प्राप्त ब्रम्हा के बाद रावण ही ऐसा था जिसने ४ वेदों का ज्ञान प्राप्त किया था।
रावण ज्ञान का ऐसा सागर बन गया था की यदि वो अपने ज्ञान को सार्थक करता तो आज भारत वर्ष कही और होता परंतु जब ज्ञान और विज्ञानं अपनी अति की सिमा पर आ लगते है तो उनका विनाश हो जाता है।
जिस प्रकार से मोहन जोदड़ो सभयता हिडम्बा सभ्यता का विनाश अति विकसित होने के कारन से हुआ उसी प्रकार से बाकि सभी कालो में भी उनका विनाश हुआ है।
आज के ही इस युग में देखा जाये तो हम सभी अपनी मृत्यु का सामान एकत्रित कर रहे है।
नए नए आविष्कार आज तो लाभकारी है परंतु कुछ समय बाद इनके घातक प्रभावो का पता चलता है CNG का प्रयोग भी कुछ इसी प्रकार है।
आगे का विवरण अगले सप्ताह। 

Thursday, 18 August 2016

रक्षा सूत्र अथवा रक्षा बंधन

नमस्कार मित्रो
आज में प्राचीन समय में होने वाली कुछ घटनाओ के वर्णन से आपको कुछ बताना चाहूंगा
जैसा की सभी को पता है की आज रक्षा बंधन का त्यौहार है परंतु ये त्यौहार किस आधार पर था तथा कन  इसे मनाता था प्राचीन पद्धतिया क्या थी इसे मानाने की उनके विषय में भी जानना आवश्यक है।
तो कथा कुछ इस प्रकार है की जब माभरत का युद्ध चल रहा था उस समय पर कोरवो ने चक्रव्यूह की रचना की जिस से की वो एक पांडव को मार सकें पार्थ(अर्जुन) के अन्यत्र। योजना के अनुसार पार्थ को लड़ाई के लिए विराट नगर जाना पड़ा और चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए पार्थ के पुत्र  अभिमन्यु को जाना पड़ा।
अभिमन्यु महावीर योद्धा था परंतु उसे अंतिम द्वार तोडना नहीं आता था इस कारण अभिमन्यु और बाकि सभी महारथियों को अंतिम द्वार पर काफी समय तक युद्ध लड़ना पड़ा। युद्ध के समय जब अभिमन्यु किसी से मर नहीं रहा था तब गुरु द्रोण ने कहा की जब तक इसके हाथ से वो रक्षा सूत्र नहीं काट दिया जायेगा तब तक   इसका मरना असम्भव है। उस समय पर कर्ण ने अपनी विद्या से अभिमन्यु के हाथ में बांध रक्षा सूत्र काटा को उसे वीरगति तक पहुचाया।
अभिमन्यु को रक्षा सूत्र उसकी पत्नी ने बांध था और जब तक उसका सतीत्व भंग न हो अथवा उसे काटा न जाये तब तक महारथी को कोई नहीं मार सकता था ऐसा ब्रम्हा जी का वरदान था। ये प्रथा केवल युद्ध के पहले दिन ही की जाती थी ब्राह्मण पत्नी अथवा बहन को ही ऐसा करने का अधिकार था और ये रीती केवल क्षत्रियो में ही की  जाती थी उनके अन्यत्र ये किसी भी जाती में प्रचलित नहीं थी इसका कारण था किसी और वर्ण  का युद्ध में सम्मलित न होना।प्राचीन काल में  युद्ध करना क्षत्रियो का कर्म होता था ब्राह्मणों का कर्म शिक्षा देना था यदपि ब्राह्मण युद्ध कला में महारथी थी इसका उदाहरण श्री परशुरामजी से दिया जा सकता है परंतु ये उनका कर्म नहीं था।
आज के समय पर रक्षा सूत्र बांधना एक त्यौहार समझ लिया गया है परंतु ये केवल समय का बदलाव है और हमारे पूर्वजो का विदेशी आक्रान्ताओ के द्वारा जो सदमें हुआ है उसके कारन हम सबकुछ भूल चुके है आज के समय पर प्रत्येक व्यक्ति अपनी बहन पत्नी अथवा पुत्री के लिए क्षत्रिय है आज के इस भीषण कलयुग ने हम सभी को क्षत्रिय बनने पर विवश कर दिया है।
इस विवशता को देखकर अपनी बहनो/धर्म बहनो और पुत्रियों/धर्म पुत्रियों की रक्षा  के लिए भरण करो सत आज भी है परंतु उसे केवल पहचानने की आवश्यकता है। बिष्नु श्रेस्ठ जो भारतीय सेना में गोरखा थे सेवानिवृत्त होकर रेल से अपने घर जा रहे थे उसी रेल में ४० व्यक्तियों द्वारा के बालिका को बलात्कार की इच्छा से पकड़ने पर बिष्नु जी ने केवल अपनी एक खुखरी के उस बालिका की रक्षा कर अपना धर्म निभाया।
हम सभी को आवश्यकता है ऐसे भाई पिता बनने की।

Sunday, 14 August 2016

मत - विष्णु अथवा शैव




ૐ श्री गणेशाय नमः

वस्तुतः इस सृस्टि का निर्माण किसने किया है ये विज्ञान के द्वारा अभी तक किसी को भी नहीं पता चल पाया है।

परंतु हिन्दू शास्त्रो के अनुसार इस का उद्भव किस उद्देश्य से किया गया है इसका पूर्ण रूप से अनुमान लगा पाना अभी बाकि है।

हिन्दू जनो में साधारणतयः एक विषय को लेकर विरोधाभास है की "विष्णु" अथवा "शिव" दोनों ही देवो में किस देव को उच्च दर्ज दिया जाये ? उनकी इस परेशानी का हल कुछ इस प्रकार है की श्री हरी विष्णु के समक्ष जब भी भोले बाबा का गुणगान किया जाए तो हरी को अति प्रसन्नता होती है उदाहरण के लिए जब श्री राम का विवाह उत्सव था उस समय पर भोले के गुणगान किये गए थे जब रावण का उद्धार करने के लिए श्री हरी ने पुल का निर्माण आरम्भ किया था उस समय पर भोले की ही आराधन की गई थी श्री राम ने अपने पूरे जीवन में शिव के अन्यत्र किसी की देव की उपासना नहीं की थी परंतु इसका अर्थ ये नही की उन्होंने ऐसा कभी किया ही नहीं। श्री कृष्ण के जन्म के समय भी भोले साधु का वेश धारण कर उनसे मिलने के लिए आये थे और विष्णु पुराण में भी शिव महिमा का वर्णन है।

शिव पुराण में भी लिखा है की जो भी प्राणी विष्णु की उपासना करेगा वो मेरी ही उपासना के सामान होगी और जो विष्णु का अपमान करेगा वो मेरा अपमान होगा।

सभी मंत्रो में शिव ॐ का व्याख्यान है ॐ के अन्यत्र कोई ऐसा शब्द ही नहीं जिस से किसी मंत्र का उद्भव हो सके ऐसा क्यों है इसे समझने के लिए मेरे अगले लेख की प्रतीक्षा करें।